जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य शासन से बांधों के जलसंग्रहण क्षेत्रों में रेत खनन की मंजूरी दिए जाने के रवैये पर जवाब मांगा है।
इसके लिए महज 3 दिन का समय दिया गया है। साथ ही चेतावनी दी गई है कि यदि इस अवधि में जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया तो वैध-अवैध दोनों तरह के रेत खनन पर सख्त प्रतिबंध जैसा कठोर आदेश जारी किया जाएगा।
बुधवार को प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस मूलचंद गर्ग की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से मेधा पाटकर ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर और महेश्वर बांधों के जलसंग्रहण क्षेत्र की जमीन नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण से विधिवत अधिग्रहित की है। इसके बावजूद नियमों को दरकिनारे रखकर रेत खनन की मंजूरी दे दी गई।
NVDA व कलेक्टर भी दें जवाब
मेधा पाटकर ने जोर देकर कहा कि पर्यावरणीय दृष्टि से राज्य शासन को बांधों के जलसंग्रहण दायरे में रेत खनन की स्वीकृति नहीं देनी थी। लिहाजा, अवैध रेत खनन के सिलसिले में नर्मदाघाटी विकास प्राधिरण व बड़वानी, धार, खंड़वा व खरगौन के कलेक्टर्स से भी जवाब मांगा जाए। हाईकोर्ट ने दलीलों पर गौर करने के बाद एनवीडीए व कलेक्टरों को अवैध रेत खनन पर अंकुश सुनिश्चित करने निर्देश दे दिए। साथ ही यह बताने कहा है कि जमीनों का मालिकाना हक किसका है और वहां रेत खनन की अनुमति कब और किसने दी?
विस्थापितों के पुनर्वास के लिए क्या किया
हाईकोर्ट ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर के तर्कों को सुनने के बाद नहरों व तालाबों के डूब क्षेत्र में आने वाले विस्थापितों के पुनर्वास के संबंध में राज्य शासन की ओर से उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी तलब कर ली है। इसके लिए भी तीन दिन की मोहलत दी गई है। मेधा पाटकर ने बताया कि बेतरतीब तरीके से नहरें और तालाब इंदिरा सागर व ओंकारेश्वर बांध क्षेत्र में बनाए जा रहे हैं। इस वजह से सैकड़ों ग्रामीण किसानों पर आफत आ गई है। उनकी कृषि भूमि डूब में आने के बावजूद राज्य और एनवीडीए शिकायतों पर सुनवाई नहीं कर रहे। कायदे से मुआवजा व जमीन के बदले जमीन मिलना चाहिए। इस संबंध में राज्य शासन से नीति के बारे में जानकारी तलब की जानी चाहिए।
