राहुल गांधी की मौजूदगी के बावजूद दिग्विजय सिंह खुद को संभाल नहीं पा रहे थे। अब इसे दुख कहो या प्रपंच लेकिन पहली बार दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच खुद को अदना और पिछड़ा प्रदर्शित करने का प्रयास किया।
मंच पर जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के बाद भाषण के लिए उनका नाम बोला गया तो वे अपनी जगह से नहीं उठे। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनसे भाषण देने का आग्रह भी किया पर वे राहुल गांधी से चर्चा करने में व्यस्त रहे। बाद में खुद राहुल गांधी ने उन्हें भाषण देने को कहा तो मान गए।
इस बीच प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश ने माइक संभाला और घोषणा की कि राहुल गांधी को रतनगढ़ हादसे के शिकार लोगों से मिलने दतिया जाना है, इसलिए दिग्विजय सिंह या अन्य कोई नेता भाषण नहीं देगा, सिर्फ कमलनाथ बोलेंगे। इसके बाद कमलनाथ ने भाषण दिया। वे भाषण खत्म कर माइक से हटे तो दिग्विजय सिंह ने माइक संभाल लिया।
उन्होंने कहा- मुख्यमंत्री रहते हुए मैंने कभी सोनिया जी और राहुल जी के सामने भाषण नहीं दिया लेकिन आज बाल हठ (ज्योतिरादित्य सिंधिया) के आगे झुकना पड़ रहा है। इसके बाद उन्होंने कहा, हमारी संस्कृति में ढलते सूरज को कोई प्रणाम नहीं करता। आज इस मंच पर हमारे बीच उगते सूरज विराजमान हैं। हम सब मिलकर प्रदेश में परिवर्तन लाएं और 2014 में इन्हें और मजबूत बनाएं।
इससे पहले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ हेलिकॉप्टर से आए श्री सिंह मंच के पास बनाए गए प्रवेश द्वार के बाहर ही खड़े रहे। सभी नेताओं के अंदर जाने के कुछ देर बाद वे गेट के अंदर गए और एक कोने में खड़े हो गए। सेवादल और संगठन के पदाधिकारियों का परिचय लेने के बाद जब राहुल गांधी के साथ अन्य नेता मंच पर पहुंच गए तब भी श्री सिंह नीचे ही रहे।
श्री सिंधिया ने उनसे आग्रह किया तब वे मंच पर आए, लेकिन पीछे की लाइन में कोने की कुर्सी पर बैठ गए। इतना ही नहीं, उन्होंने धूप से बचने के लिए तौलिया से अपना चेहरा भी ढंक लिया था। सभा समाप्ति के बाद राहुल गांधी नेताओं को साथ लेकर हेलिकॉप्टर से दतिया रवाना हो गए, लेकिन श्री सिंह कार में बैठकर स्टेशन पहुंचे और श्रीधाम एक्सप्रेस से भोपाल रवाना हो गए।
- पंडाल में खुद को पिछड़ा जताना
- मंच से नाम पुकाने जाने के बावजूद अनसुना करना
- व्यवस्था बदल जाने के बावजूद माइक पर आना
- भाषण में भी जता देना कि अब हमारा जमाना नहीं रहा
- राहुल गांधी के साथ दतिया ना जाना
ये सारे घटनाक्रम कुछ इशारा कर रहे हैं। स्थितियां सभी जानते हैं। यूपी चुनाव के बाद से ही हाईकमान दिग्गी को वेल्यू नहीं दे रहा है, लेकिन पंडितजी जानते हैं कि दिग्विजय सिंह जैसा राजनेता इतनी जल्दी हार मानने वालों में भी नहीं है, फिर ऐसा क्या हुआ जो इस तरह के उपक्रम करने पड़े। सार्वजनिक रूप से खुद को तिरस्कृत और अछूत साबित करनेे की कोशिश की गई। वो चाणक्य से चतुर दिमाग के स्वामी हैं, अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन अब तक के प्रदर्शन को ध्यान में रखें तो यह दिग्गी का दुख है, गहरा दुख। अब वो कांग्रेस में सबसे सामान्य और सबसे पीछे रहना चाहते हैं। वो नहीं चाहते कि कांग्रेस में उनकी हालत वैसी ही बनी रहे जैसी उमा भारती की है।