उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। भाजपा और भगवान में बस एक ही अंतर है, भगवान खुद को भाजपाई नहीं मानते, लेकिन भाजपाई खुद को भगवान से कम नहीं मानते। जब जो मन करता है दुनिया को वैसा चलाने की कोशिश करते हैं। सिंधिया के 'श्रीमंत' में सामंतवाद देखने वाली भाजपा को सिंह के 'भंवर साहब' में कोई सामंतवाद दिखाई नहीं देता।
ग्वालियर राजवंश की अंतिम रानी विजयाराजे सिंधिया को गर्व के साथ 'राजमाता' का संबोधन देने वाली भाजपा को उन्हीं के बेटे माधवराव सिंधिया को 'महाराज' कहने में बड़ी लज्जा आया करती थी। माधवराव सिंधिया का नाम आते ही उन्हें अचानक देश की स्वतंत्रता और राजकाल का समापन याद आ जाता था।
अभी हाल ही में जैसे ही ग्वालियर राजवंश के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस की लीडरशिप सौंपने की चर्चा शुरू हुई तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर भाजपा के तमाम नेताओं को सामंतवाद की याद आ गई। सामंतवाद के नाम पर उन्होंने सिंधिया पर सीधे हमले बोले। भाजपा का एक भी शीर्षनेता नहीं बचा जिसने सामंतवाद की उलाहना ना दी हो।
लेकिन सिंधिया के 'श्रीमंत' में सामंतवाद देखने वाली भाजपा को चुरहट के राजवंशी कृष्णकुमार सिंह के 'भंवर साहब' में कोई सामंतवाद दिखाई नहीं दे रहा। आज मध्यप्रदेश की पूरी की पूरी भाजपा कृष्णकुमार सिंह को गर्व के साथ 'भंवर साहब' संबोधित कर रही है। उन्होंने बीजेपी जो ज्वाइन कर ली है, ना की होती तो कर डालते लोकतंत्र की स्थापना।
आप खुद पढ़ लीजिए वो प्रेसनोट जो बीजेपी के अधिकृत मीडिया सेंटर से जारी हुआ और जिसमें 'राव साहब' व 'भंवर साहब' जैसे सामंती शब्दों का उपयोग गर्व के साथ किया गया। विषय संबोधन का नहीं है, विषय है मानसिकता का। स्व. माधवराव सिंधिया कभी कभी कहा करते थे कि 'हमारे भीतर केवल उन्हीं लोगों को सामंतवाद दिखाई देता है, जिन्हे हमारे नजदीक आने का अवसर नहीं मिल पाता।'