एक अध्यापक नेता के जाल में फंसे अध्यापक और सरकार

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सम्माननीय अध्यापक साथियो, सादर नमस्कार। साथियो आज प्रदेश के अध्यापक, संविदा शिक्षक एक ऐसे मुहाने पर आकर खड़े हो गए है जहाँ से समान वेतन की नदी को पार करना एक चुनौती बन गई है अध्यापक उस नदी को किसी भी हालत में पार तो करना चाहते है लेकिन अध्यापक को तथाकथित नेताजी द्वारा डराया जा रहा है की उस नदी में जैसे ही उतरोगो तो बाढ़ आ जाएगी।

अब अध्यापक को तय करना है कि वह नदी में उतर कर उसको पार करेगा या उसके भय से समझौता कर लेगा। सब जानते है की भय एक मानसिक अवस्था है जिसका हकीकत से कोई सरोकार नहीं होता।

सम्मानियो एक नेताजी नहीं चाहते की अध्यापको को एक मुस्त नियुक्ति दिनांक से सभी को समान वेतन मिले क्योंकि उनकी रणनीति आन्दोलन के समय से ही चल रही थी। क्या पता आखिर वो अध्यापको का मुद्दा क्यों जीवित रखना चाहते है। सबसे पहले किस्तों की बात उन्ही के मुख से निकली। अखबारों में भी खबरे दी गई की 4 किस्तों में सहमती बनी। अध्यापक पिछले 17 साल से एक ऐसे नेतृत्व को झेल रहा है जो अध्यापको के इतिहास में सबसे ज्यादा असफल रहा है। उनके द्वारा कई आन्दोलन किये गए अगर वो पूरी ईमानदारी के साथ किये जाते तो हमारे 98 वाले साथियो को समान वेतन मिल गया होता। उनके आन्दोलनों से नेताजी का कद तो काफी बड़ा लेकिन आम अध्यापको का कद उतना ही घटता गया।

आज अध्यापको न जाने वो क्या समझने लगे है की जब वो चाहेंगे अध्यापको को कहीं भी बुलाकर अपना काम निकाल लेंगे और अध्यापक 17 वर्षो की तरह ही ठगा का ठगा रह जायेगा। उनके द्वारा किये गए सभी औपचारिक कार्य उनकी सुनियोजित रणनीति का ही हिस्सा है जिसके भ्रम में अध्यापक विगत 17 वर्षो से फसा हुआ है।

क्या आचार संहिता में कोई कार्य करने से अध्यापको को कोई लाभ होगा?मुझे नहीं लगता लेकिन उनके द्वारा आचार संहिता का समय उचित माना गया। अपने मोर्चे में संविदा का नाम जोड़कर रखा गया लेकिन संविदा शिक्षको की कोई माँग कभी नहीं की। हमारे प्रदेश के बुद्धिजीवी अध्यापक एक ऐसे नेता का शिकार हुए जिसने कभी किसी का भला नहीं कर पाए अगर उनके संवर्ग की ही बात करे तो कई रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े है जिसे अपने बच्चो का भविष्य सता रहा बहुत दुःख होता है की उस नेता ने अपनी महत्वकांक्षाओ की पूर्ती के लिए अध्यापको के साथ लगातार धोखा करते आये है।

सरकार भी उसके जाल में ऐसे फसी की नेताजी ने जो चाहा की सबको एक मुस्त वेतन न मिले तो उनकी सहमती को अध्यापको की सहमती समझ बैठी। और अध्यापक सरकार के विरोध में हो गए जैसे नेताजी चाह रहे थे की ।ये खामियाजा सरकार को उठाना पड़ेगा और नेताजी भी गदगद न जाने उनकी क्या सेटिंग है।

साथियों अध्यापक संविदा शिक्षक संघ और कोर कमेटी द्वारा किये गए विरोध प्रदर्शन और रैलियो से सरकार भी सकते में है उसे अब लगने लगा है की अध्यापक उसके विरोध में जा रहे इसीलिए अब वो इस समय में अध्यापको के विरोध को रोकने का प्रयास किसी तथाकथित नेता के माध्यम से कर रही है और हमारे पुराने नेता जी खुश है क्योंकि उनकी दोनों तरफ चांदी ही चांदी है और खामियाजा अध्यापक भुगतेगा। साथियो हमें अपने भविष्य के प्रति सावधान होना पड़ेगा।

अध्यापक साथियो अब हमारे पास दो ही विकल्प है की हम 13 जनवरी की तरह भोपाल से बेरंग बापिस घर लौटे या 3,4,5 दिसम्बर की तरह सफल और प्रभावशाली तालाबंदी करे जिससे सरकार हिल गई थी।

अध्यापक संविदा शिक्षक संघ 18,19,20 सितम्बर को तालाबंदी करने जा रहा है और प्रदेश के सभी अध्यापक संविदा शिक्षको से अपील करता है की तीन दिन जोरदार तालाबंदी कीजिये। साथ ही अन्य अध्यापक संघो से भी अपील करता है की अब अध्यापको के हित में ईमानदारी के साथ तालाबंदी कार्यक्रम में अपनी सहमती और सहयोग करे। अध्यापक हित में आपका स्वागत है।

साथियो आपका एक सही समय लिया गया सही फ़ैसला हम सभी का भविष्य बदल सकता है।""

देवेन्द्र अहिरवार
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