ये एसपी किसी को भी बंद कर देते है

SP की मनमानी का शिकार ASI
भोपाल। मिल रही कहानी बता रही है कि मध्यप्रदेश पुलिस में एक एसपी ऐसे भी हैं जो किसी को भी उठाकर बंद कर ​देते हैं। खुद फरियादी, खुद कोतवाल और खुद ही सजा दे डालते हैं। यदि वरिष्ठ अधिकारियों का हस्तक्षेप न होता तो क्या पता अपने ही विभाग के एएसआई का एनकाउंटर कर डालते। 

मामला अशोकनगर के एसपी कुमार सौरभ को मोबाइल फोन पर मिली एक धमकी का है। यह धमकी शिवपुरी में पोस्टेड एक एएसआई के मोबाइल फोन से दी गई थी। बस फिर क्या था एसपी साहब ने टीआई को आदेशित किया, टीआई भी सीधे मिसाइल की तरह गए, बिना विभागीय प्रक्रियाओं को पूरा किए पुलिस लाइन से एएसआई को ऐसे उठा लाए जैसे कोई आतंकवादी हो। 

अशोकनगर लाकर बंद किया, एसपी ने खुद पट्टे से पीटा और जेल में डाल दिया। बाद में पता चला कि गलत आदमी आ गया है तो फिर पुलिस गई और शिवपुरी से एक सिपाही को उठा लाई। उसे भी बंद कर दिया। 

जब यह खबर मीडिया को लगी तो मीडिया ने अपने स्तर पर पड़ताल शुरू की। जैसे ही पड़ताल शुरू की गई अशोकनगर और शिवपुरी दोनों ही जिलों के पुलिस अधिकारियों ने चुप्पी साध ली। शिवपुरी एसपी ने तो गैर जिम्मेदारा बयान देते हुए यहां तक कह डाला कि अब अशोकनगर पुलिस क्या कर रही है मुझे क्या मालूम। जिस एसपी की पुलिस लाइन से एएसआई को उठा लिया जाए, वह ऐसा गैर जिम्मेदाराना बयान दे तो क्या कहेंगे आप। 

अशोकनगर कोतवाली में कोई भी व्यक्ति उस एफआईआर का जिक्र करने को तैयार नहीं, जिसमें एएसआई को आरोपी बनाया गया था। एसपी भी फोन नहीं उठा रहे। मामले का फरियादी आज तक नहीं बताया गया। घटना की कहानी तक नहीं बताई गई। बस कार्रवाई होती रही। 

आज जब गिरफ्तार एएसआई जमानत पर बाहर आया तब उसने पूरी कहानी सुनाई। 


एएसआई राजेंद्र पांडे ने बताया कि जब मेरा रिटायरमेंट का समय नजदीक आया, तब मेरे साथ यह जुर्म विभाग ने ही कर दिया। अब मैं नौकरी नहीं करूंगा, बल्कि इस्तीफा देकर अन्याय के खिलाफ आखिर तक लड़ाई लडूंगा। यह कहना है कि 57 वर्षीय एएसआई राजेंद्र पांडे का, जो गुरुवार की रात 10 बजे अशोकनगर जेल से जमानत पर छूटकर शिवपुरी आए। श्री पांडे ने अशोकनगर एसपी पर मारपीट का आरोप लगाते हुए पुलिस ज्यादती के बारे में भी विस्तार से बताया।

मेरा 27 दिसंबर को मोबाइल गुम हो गया। मैं 28 दिसंबर को मुल्जिम पेशी से लौटकर बैरक में गया तो वहां एक हवलदार मुझे बुलाने आया। मैने पूछा तो उसने कहा कि बाहर साहब बुला रहे हैं। वो भी पुलिस वाला था, इसलिए मैं बाहर मिलने आ गया। सड़क किनारे खड़े पुलिस वाहन में टीआई कोतवाली अशोकनगर आरएन पचौरी बैठे थे। मुझे टीआई ने वाहन में बैठने को कहा। मैने जब कारण पूछा तो बिना कुछ बताए मुझे वाहन में बिठाकर अपने साथ ले जाने लगे।

बकौल राजेंद्र पांडे, मुझे एक दिन तक एक कमरे में बंद रखा गया। दूसरे दिन एसपी अशोकनगर कुमार सौरभ कोतवाली आए और मुझसे पूछा कि तुम्हारा मोबाइल कहां है। जब मैने उन्हें बताया कि मेरा मोबाइल गुम हो गया है। इतना सुनते ही उन्होंने मेरे साथ पट्टे से मारपीट की। जिससे मेरी आंख में चोट आई है। श्री पांडे ने बताया कि मुझे यह पता ही नहीं था कि आखिर मेरे ही विभाग के अधिकारी मुझे किस जुर्म की सजा दे रहे हैं।


जेल में दूसरे आरोपी से पता चला जुर्म


एएसआई राजेंद्र पांडे को जब 31 दिसंबर को अशोकनगर जेल भेज दिया तो वहां अगले दिन 1 जनवरी को उनके साथ बैरक में रहने वाला आरक्षक धर्मेंद्र तिवारी को भी लाया गया। श्री पांडे ने बताया कि जेल में धर्मेंद्र ने मुझसे माफी मांगते हुए कहा कि मैने तुम्हारा मोबाइल गुम करके उससे एसपी अशोकनगर को फोन लगा दिया था। तब श्री पांडे को पता चला कि आखिर किस जुर्म की सजा में उन्हें गिरफ्तार करके लाया गया है। श्री पांडे को तब जमानत मिल सकी, जब जुर्म का वास्तविक आरोपी धर्मेंद्र तिवारी जेल पहुंचा।


अपराधियों की तरह किया व्यवहार


एक दिन तक कमरे में बंद रखने के बाद जब अगले दिन एसपी के सामने पेश किया, तो उन्होंने मुझे जंगल में स्थित एक चौकी में ले जाने के लिए कहा। उस समय श्री पांडे डर गए कि कहीं पुलिस मेरा एनकाउंटर करने तो नहीं ले जा रही।


बिना सस्पेंड हुए जेल काट आया दरोगा


इस पूरे मामले में शिवपुरी एसपी व आरआई को सिर्फ इतनी ही खबर थी कि किसी प्रकरण में एएसआई राजेंद्र पांडे व आरक्षक धर्मेंद्र तिवारी को अशोकनगर पुलिस साथ ले गई है। उन्हें या तो प्रकरण की जानकारी नहीं थी, या फिर वे जान बूझकर भी अनजान बने रहे। नियमानुसार शासकीय कर्मचारी को सस्पेंड करने के बाद ही प्रकरण दर्ज कर जेल भेजा जा सकता है। लेकिन दरोगा जी ऑन ड्यूटी गिरफ्तार हुए, थाने में बंद रहे और जेल काट कर जमानत पर भी छूट आए।

विभागीय मामला है, वरिष्ठ से शिकायत करें

यदि एएसआई के साथ मारपीट हुई है, तो यह गलत है, हम इसकी जांच करवाएंगे। वैसे तो मामला विभागीय है, एएसआई को भी कहीं और जाने की बजाए वरिष्ठ अधिकारियों से इस संबंध में शिकायत करना चाहिए। यदि वे निर्दोष हैं तो जांच में उनका नाम हट जाएगा।
यूसी षडंगी
आईजी ग्वालियर रेंज 

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