EDITORIAL PAGE: विशाखापट्टनम से पहले मंडला का संदेश: पेसा सामाजिक सुधार का औज़ार है

इस वर्ष भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय द्वारा आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में दो-दिवसीय पेसा महोत्सव (23 एवं 24 दिसंबर 2025) का आयोजन किया जा रहा है। गौरतलब है कि 24 दिसंबर 1996 को भारत की संसद से संविधान की पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में 'स्व-शासन' की स्थापना के लिए पेसा (अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज का विस्तार) कानून पारित किया गया था।अनुसूचित क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा घोषित किए जाते हैं। अनुच्छेद 244(1) और संविधान की पांचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों में स्वायत्त सरकार संबंधित प्रावधान हैं।

वर्तमान में, 10 राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना में पांचवीं अनुसूची क्षेत्र घोषित किए गए हैं। पेसा अधिनियम, 1996, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं (गांव की विधानसभाओं) को स्वशासन की शक्तियां प्रदान करता है। इसके तहत, ग्राम सभाएं स्थानीय मामलों पर निर्णय लेने के लिए सशक्त हैं, जिसमें शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाना भी शामिल है। कई आदिवासी बहुल क्षेत्रों, जैसे कि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में, महिलाओं ने इस कानूनी प्रावधान का लाभ उठाया है। उन्होंने शराब के सेवन के कारण होने वाली घरेलू हिंसा और आर्थिक बर्बादी से तंग आकर एकजुट होकर ग्राम सभाओं में शराबबंदी का प्रस्ताव रखा और उसे पारित करवाया। इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश के कई ग्राम सभाओं ने पेसा के तहत शराब बिक्री के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है और अवैध ठेकों का विरोध किया है। इससे शराब की उपलब्धता में कमी, घरेलू हिंसा और कर्ज घटा एवं महिलाओं और बुजुर्गों की सामाजिक भूमिका बढ़ी है। यह दिखाता है कि ग्राम सभा केवल विकास नहीं, सामाजिक सुधार का मंच भी है। 

पेसा अधिनियम 1996 के कंडिका - 4(ड)(i) में पंचायतों और ग्राम सभा को किसी मादक पदार्थ की बिक्री और उपभोग पर प्रतिबंध लागू करने या विनियमित करने या प्रतिबंधित करने की शक्ति दी गई है। मध्यप्रदेश पेसा नियम 2022 के अध्याय -7 की धारा (23)(1,के) में कहा गया है कि राज्य शासन द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में मादक पदार्थों के संबंध में निषेधाज्ञा जारी करने पर, ग्राम सभा अपनी स्थानीय सीमाओं के भीतर इसे लागू करने आवश्यक कदम उठाएगी। दूसरा मध्यप्रदेश आबकारी अधिनियम,1915 की धारा -16 के अधीन विहित मादक पदार्थों की व्यक्तिगत आधिपत्य की सीमा को कम कर सकेगी। जबकि ब्रिटिश शासन में शराब पर लाइसेंस, कर और ठेकेदारी व्यवस्था लागू हुई और परंपरागत उत्पादन को “अवैध” घोषित किया गया। मंडला एक आदिवासी जिला है और यहां पेसा कानून लागू है, जिसके तहत ग्राम सभाओं को शराब के ठेकों पर नियंत्रण का अधिकार है। कई ग्राम पंचायतों ने इस कानून का उपयोग करके शराबबंदी के प्रस्ताव पारित किए हैं और प्रशासन से इन्हें लागू करने की मांग की है। मंडला जिले में महिलाओं द्वारा चलाया गया शराब बंदी अभियान कई स्थानीय स्तरों पर सफल रहा है, जिससे कई  गांवों में शराब की बिक्री और सेवन पूरी तरह बंद हो गया है। हालांकि, यह सफलता पूरे जिले में एक समान नहीं है और व्यापक स्तर पर पूर्ण शराबबंदी के लिए प्रयास अभी भी जारी हैं। 

मंडला के महुआटोला (सतपहरी ग्राम पंचायत, विकास खंड निवास) जैसे कई गांवों में महिलाओं की पहल ने गांव की तस्वीर बदल दी है। इन गांवों को अब शराब मुक्त घोषित कर दिया गया है, जहां शराब बेचना या पीना पूरी तरह से दंडात्मक है। महिलाओं के प्रयासों से शराब मुक्त हुए गांवों में घरेलू कलह, विवाद और महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है। मंडला जिले के मोहगांव विकास खंड के कौआडोंगरी ग्राम पंचायत के सकरी और खैरी रैयत जैसे गांवों में, ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से शराब बनाने या पीने वालों पर भारी जुर्माना (25,000 रूपए तक) लगाने का फैसला किया है। इसी वर्ष मंडला जिले की घुघरी तहसील में शराबबंदी को लेकर ग्राम पंचायतों ने सराहनीय पहल की है। जनपद पंचायत मोहगांव की 38 और घुघरी जनपद की 46 पंचायतों सहित कुल 84 पंचायतों ने सर्वसम्मति से शराबबंदी के प्रस्ताव पारित किए हैं। पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि गांवों में शराब के सेवन और विक्रय से सामाजिक जीवन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है, जिससे विशेष रूप से युवाओं और बच्चों का भविष्य खतरे में है। महिलाएं अक्सर जिला मुख्यालय पहुंचकर जनसुनवाई में हिस्सा लेती हैं और अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रशासन व आबकारी विभाग से सहयोग की मांग करती हैं। 

कुछ दिन पहले  मंडला जिले के भपसा गांव की महिलाएं मंगलवार की जनसुनवाई में बड़ी संख्या में कलेक्ट्रेट पहुंचीं। उन्होंने गांव में बढ़ रही अवैध शराब और गांजा बिक्री पर रोक लगाने की मांग करते हुए कलेक्टर को ज्ञापन दिया। महिलाओं ने शिकायत की कि भपसा गांव में कई जगहों पर अवैध रूप से शराब का निर्माण और बिक्री होती है। इसके कारण गांव का माहौल लगातार खराब हो रहा है। उन्होंने बताया कि नशाखोरी के चलते गलियों और मोहल्लों में आए दिन विवाद, मारपीट और गाली-गलौज जैसी घटनाएं बढ़ गई हैं। महिलाओं का कहना है कि स्थिति अब नियंत्रण से बाहर होती जा रही है।  महिलाओं की लगातार शिकायतों और जनसुनवाई में पहुंचने के बाद आबकारी टीम और पुलिस ने अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई की, जिससे कई अवैध दुकानें बंद हुईं। मंडला जिले में महिलाओं का शराबबंदी अभियान जमीनी स्तर पर सकारात्मक परिणाम दे रहा है। मंडला का आदिवासी समाज विशेषकर गोंड और बैगा समुदाय में महुआ पारंपरिक रूप से अनुष्ठानों, पर्वों, सामुदायिक मेलों का हिस्सा रहा है। 

अधिकांश आदिवासी समाजों में शराब, मनोरंजन या पलायन का साधन नहीं, बल्कि अनुष्ठान और सामुदायिक जीवन का अंग रही है। महुआ से बनी शराब देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है जो पूर्वजों की स्मृति से जुड़ी होती है और प्रकृति के साथ संबंध का प्रतीक होती है। यहां शराब पवित्रता और सहभागिता से जुड़ी है, न कि लत से। गोंड, बैगा, भील, कोरकू जैसे समुदायों में जन्म, विवाह, फसल कटाई और मृत्यु संस्कार इन सभी अवसरों पर सीमित मात्रा में शराब का प्रयोग होता है। पेसा आधारित शराबबंदी का सांस्कृतिक अर्थ यह है कि यह संस्कृति का निषेध नहीं,बल्कि संस्कृति की रक्षा है। महिलाओं के नेतृत्व में हुआ आंदोलन कहता है “महुआ हमारी परंपरा है, ठेका हमारी तबाही।” यह शराबबंदी उपभोग की मात्रा और संदर्भ को नियंत्रित करती है, न कि सांस्कृतिक पहचान को मिटाती है। यह घरेलू सत्ता संतुलन में ऐतिहासिक बदलाव है।कानून बाहर से नहीं,समाज के भीतर से आता है। मंडला की शराबबंदी राज्य के आबकारी राजस्व मॉडल को चुनौती देती है। 

आबकारी विभाग राजस्व कानून से चलता है और पेसा कानून को परामर्शात्मक मान लिया गया है। ग्रामसभा निर्णयों को अक्सर “सामाजिक अपील” कहकर खारिज कर दिया जाता है। मंडला की शराबबंदी एक नीति नहीं, एक विमर्श है। यह विमर्श कहता है कि अगर नशे से समाज टूट रहा हो, तो ग्राम सभा को तय करने दो कि क्या बचेगा और क्या नहीं। मंडला यह साबित करता है कि जब अधिकार, भरोसा और सामूहिक चेतना मिलते हैं, तो पेसा कानून नहीं, जन–संस्कृति बन जाता है।अगर ग्राम सभा को अधिकार और भरोसा मिले, तो पेसा कागज से निकलकर ज़मीन पर उतर सकता है।
- लेखक राज कुमार सिन्हा, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के अध्यक्ष और समन्वयक है।
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