भोपाल, 21 नवम्बर 2025: देव मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में भारी अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) कार्यालय की जांच में अस्पताल में न एमबीबीएस डॉक्टर मिले, न नर्सिंग स्टाफ और ओपीडी भी बंद मिली। इतना ही नहीं रजिस्टर के अनुसार, पिछले एक महीने से एक भी मरीज भर्ती नहीं हुआ पाया गया।
देव मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल पहले से ही बंद मिला
नियमों का घोर उल्लंघन सामने आने पर CMHO ने अस्पताल का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया है। हालांकि कार्रवाई यहीं तक सीमित है, जबकि एनएसयूआई ने बड़े फर्जीवाड़े का आरोप लगाते हुए अस्पताल संचालकों व डॉक्टरों पर FIR और गिरफ्तारी की मांग उठाई है। CMHO द्वारा गठित जांच दल ने 17 नवंबर को दोपहर 2 बजे अस्पताल का निरीक्षण किया था। जांच में सामने आया कि 16 अक्टूबर 2025 के बाद कोई भी मरीज भर्ती नहीं हुआ, यानी अस्पताल लगभग बंद अवस्था में मिला। जिससे साफ हुआ कि यह अस्पताल मध्यप्रदेश उपचर्या-गृह नियम 1973 के तहत आवश्यक मानकों का पालन नहीं कर रहा था।
डॉ. नसीम खान पर एमएलसी में धांधली का आरोप
निरीक्षण दल ने पाया कि डॉ. नसीम खान अस्पताल में रेजिडेंट नहीं हैं, फिर भी उनके नाम पर मरीज आराम गुर्जर की प्री-एमएलसी बनाई गई। ऐसे में डॉ. नसीम खान द्वारा बनाई गई RSO रिपोर्ट (MLC नं. 030/032) संदिग्ध है। इस गलत रिपोर्ट पर जिला मेडिकल बोर्ड से अलग से अभिमत लिया जा रहा है। ये तथ्य गंभीर कानूनी उल्लंघन और फर्जीवाड़े की ओर संकेत करते हैं।
लाइसेंस रद्द, पर FIR अब भी नहीं
CMHO डॉ. मनीष शर्मा ने अस्पताल का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया और नोटिस अवधि भी नहीं दी, क्योंकि अस्पताल पहले ही बंद पाया गया। इस कार्रवाई के पत्र की प्रतिलिपि अपर मुख्य सचिव, आयुक्त, कलेक्टर, पुलिस कमिश्नर और DCP सहित छह उच्च अधिकारियों को भेजी गई। लेकिन अस्पताल संचालकों पर FIR या गिरफ्तारी नहीं, जिससे सवाल उठ रहे हैं।
एनएसयूआई ने उठाई गिरफ्तारी की मांग
एनएसयूआई का आरोप है कि यह मामला सरकारी योजनाओं में लाखों के फर्जीवाड़े, मरीजों के फर्जी दस्तावेज तैयार करने और प्रशासन को गुमराह करने से जुड़ा हुआ है। एनएसयूआई उपाध्यक्ष रवि परमार ने कहा कि अस्पताल बंद करना पर्याप्त नहीं। जब तक FIR और गिरफ्तारी नहीं होती तथा सरकारी योजनाओं की ठगी की राशि वसूल नहीं की जाती, लड़ाई जारी रहेगी।
NSUI की प्रमुख मांगें
अस्पताल संचालकों और जिम्मेदार डॉक्टरों पर FIR और तुरंत गिरफ्तारी।
मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान व अन्य योजनाओं में हुए लाखों के फर्जीवाड़े की वसूली।
पूरे मामले की स्वतंत्र, निष्पक्ष जांच।
स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन में फर्जीवाड़े को संरक्षण देने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।
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