मेरी कविता

नकुदरत का करिष्मा है न मौजों की रवानी है, 
मेरी कविता तो बस केवल मेरी आँखों का पानी है,
जो देखा दर्द आँखों ने गली कूचे, मोहल्लों मे, 
उसी पीड़ा को करती व्यक्त यह सच्ची कहानी है।1। 

जो कहना चाहता हूँ वह छिपा इन अश्रुधारों मे, 
मेरी पीड़ा की चीखों में मेरे दिल की पुकारों मे,
जो गहराई में उतरे हैं उन्ही को कुछ हुआ हासिल,
कभी मोती नहीं मिलते समंदर के किनारों मे।2। 

नहीं मंदिर न गिरिजाघर नहीं मस्जिद न काबा हूँ, 
नही पंडित, नही ईसा नहीं मौला न बाबा हूँ,
मेरे सीने में जलती आग बस इंसानियत की है,
मै शोला हूँ किसी ज्वालामुखी का तप्त लावा हूँ।3।

~डॉ विनय दुबे, रीवा
संपर्क: 9827352863
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