पेड़ों की मीठी प्रीत सुनो।
नदियाँ बहती निर्मल जल,
धरती कहती मत कर छल।1।
पंछी गाएँ मीठे स्वर,
फूल खिलें हर डाली पर।
नीला अंबर, शीतल हवा,
जीवन की यह असली दवा।2।
पर लालच में इंसान भूला,
काटे तरूवर जंगल सूना।
धुआँ उगलते कल-कारखाने,
प्रकृति के सब बिगड़े ठिकाने।3।
आओ मिलकर शपथ उठाएँ,
धरती माँ को पुनः सजाएँ।
पेड़ लगाएँ, प्रकृति बचाएँ,
स्वच्छ धरा,आकाश बनाएँ।4।
~ डॉ विनय दुबे रीवा
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शासकीय उत्कृष्ट उ.मा.वि. मार्तंड क्र.1रीवा
