खाने में नींबू नहीं होने के कारण यूरोप के लाखों लोग मर गए। खाने में नींबू की कमी से मरने वालों की संख्या, विश्व युद्ध में मरने वाले सैनिकों से ज्यादा थी। इसके अलावा जापान में केवल चावल खाने के कारण लाखों लोग बीमार हो गए। उनको चलने फिरने में दिक्कत होती थी। कुछ लोगों को इस कारण से हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई। आइए, आज हम आपको दुनिया की 2 ऐसी घटनाओं के बारे में बताते हैं, जिनको किसी युद्ध या साम्राज्य के इतिहास में दर्ज नहीं किया गया परंतु मेडिकल साइंस के प्रत्येक स्टूडेंट को बताया जाता है, ताकि वह Dietary diversity की वैल्यू को समझ सके। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, भोपाल के डॉक्टर इंद्रेश कुमार का यह आर्टिकल पढ़िए जो उन्होंने "Nutrition Month 2025" के अवसर पर विशेष तौर पर लिखा है:-
पोषण माह विशेष:अज्ञात पोषक तत्व और आहार विविधता का महत्व
मानव सभ्यता का इतिहास केवल युद्धों, साम्राज्यों और आविष्कारों का इतिहास नहीं है। यह भोजन और पोषण का भी इतिहास है। जिस समाज ने जिस प्रकार का भोजन अपनाया, वही उसकी ताक़त, स्वास्थ्य और जीवन-प्रणाली का आधार बना। लेकिन कई बार भोजन से जुड़ी अनभिज्ञता ने मानव जाति को भयावह परिणाम भुगतने पर मजबूर किया। आज जब हम पोषण माह मना रहे हैं, तब यह स्मरण करना आवश्यक है कि अज्ञात पोषक तत्वों की खोज और आहार विविधता (Dietary diversity) का महत्व हमारे जीवन के लिए कितना निर्णायक है।
1. स्कर्वी: समुद्र की यात्रा और विटामिन C का रहस्य
15वीं से 18वीं शताब्दी को अक्सर “समुद्री खोजों का युग” कहा जाता है। यूरोप से बड़े-बड़े जहाज़ महीनों की यात्राओं पर निकलते। लेकिन इन यात्राओं की एक त्रासदी थी स्कर्वी नामक बीमारी। इस रोग में नाविकों के दाँत हिलने लगते, मसूड़ों से खून बहता, त्वचा पर नीले धब्बे उभर आते और शरीर इतना कमज़ोर हो जाता कि व्यक्ति खड़ा भी नहीं हो पाता। जहाज़ पर एक बार स्कर्वी फैलने का मतलब था कि आधे से अधिक दल बीमारी की चपेट में आ जाएगा। इतिहासकारों का मानना है कि इस बीमारी ने अकेले यूरोपीय नाविकों की लाखों जान ले लीं।
कई बार ऐसा हुआ कि दुश्मन से लड़ने का मौका ही नहीं आया क्योंकि नाविक पहले ही मर चुके थे। यही कारण था कि स्कर्वी को “युद्धों से भी अधिक घातक” कहा गया।
वर्ष 1747 में स्कॉटिश सर्जन जेम्स लिंड ने ऐतिहासिक प्रयोग किया। उन्होंने बीमार नाविकों के छह समूह बनाए और अलग-अलग आहार दिए। जिन नाविकों को नींबू और संतरे का रस मिला, वे शीघ्र स्वस्थ हो गए। यानि असली इलाज था विटामिन C
लेकिन उस समय तक किसी को “विटामिन” की अवधारणा तक ज्ञात नहीं थी। यह खोज केवल प्रयोग के आधार पर हुई। लगभग 150 वर्ष बाद वैज्ञानिकों ने विटामिन C को रासायनिक रूप से पहचान लिया। यह कहानी बताती है कि केवल पोषणीय ज्ञान की कमी ने लाखों लोगों की जान ले ली।
2. बेरी-बेरी: सफ़ेद चावल और विटामिन B1 की कमी
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में एशिया के कई देशों में एक अजीब बीमारी फैल रही थी। लोग अचानक कमज़ोर हो जाते, पैरों में सूजन आ जाती, चलने-फिरने में कठिनाई होती और कई मामलों में हृदय की विफलता से मौत हो जाती। इस रोग को बेरी-बेरी कहा गया।
समस्या यह थी कि यह रोग उन क्षेत्रों में अधिक पाया जाता जहाँ लोग मुख्य रूप से सफ़ेद (पॉलिश) चावल खाते थे। पारंपरिक रूप से लोग भूरे, अनपॉलिश्ड चावल खाते थे, जिनमें ऊपरी परत में अनेक पोषक तत्व मौजूद रहते हैं। लेकिन आधुनिक मशीनों से चावल पॉलिश करने पर यह परत हटा दी गई और साथ ही विटामिन B1 (थायमिन) का प्रमुख स्रोत भी खत्म हो गया।
जापानी नौसेना के चिकित्सक डॉ. कानेहिरो ताकाकी ने देखा कि जब नाविकों को केवल सफ़ेद चावल खिलाया जाता, तो उनमें बेरी-बेरी तेजी से फैलता है। लेकिन जब उनके भोजन में मांस, सब्ज़ियाँ और जौ शामिल किया गया, तो यह रोग गायब हो गया। बाद में वैज्ञानिकों ने खोजा कि असली कारण है थायमिन (विटामिन B1) की कमी।
थायमिन शरीर को भोजन से ऊर्जा निकालने में मदद करता है और तंत्रिका तंत्र के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से ही यह बीमारी हुई। यह कहानी स्पष्ट करती है कि कैसे आधुनिक “परिष्कृत भोजन” (refined food) ने समाज को गंभीर स्वास्थ्य संकट में डाल दिया।
3. अज्ञात पोषक तत्व आज भी एक रहस्य
विज्ञान आज 30 से अधिक आवश्यक पोषक तत्वों को पहचान चुका है। लेकिन क्या यही अंत है? बिल्कुल नहीं।
भोजन में ऐसे कई तत्व हैं जिनकी भूमिका अभी पूरी तरह समझी नहीं जा सकी है।
हल्दी का कर्क्यूमिन प्रतिरक्षा बढ़ाता है और कैंसर-रोधी है।
अनार और अंगूर के पॉलीफेनॉल्स हृदय रोग से बचाते हैं।
हरी पत्तेदार सब्ज़ियों के फाइटोकेमिकल्स शरीर को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं।
ये सभी तत्व हाल ही में वैज्ञानिक ध्यान में आए हैं। संभव है कि भविष्य में और भी तत्व सामने आएँ, जिनकी कमी आज हमारी कई स्वास्थ्य समस्याओं की जड़ हो।
4. भारतीय थाली और आहार विविधता
भारत की परंपरागत थाली हमेशा से विविध रही है। गाँवों में लोग ज्वार-बाजरा-रागी जैसे मोटे अनाज खाते थे। साथ में मौसमी दालें, सब्ज़ियाँ, घर के आँगन की पत्तेदार भाजी, दही, छाछ और मौसमी फल।
यह विविधता केवल स्वाद ही नहीं देती थी, बल्कि अनगिनत पोषक तत्व भी देती थी। यही कारण था कि हमारे पूर्वज कठिन परिश्रम करने पर भी स्वस्थ रहते थे।
आज स्थिति बदल गई है। शहरी जीवनशैली में गेहूँ-चावल तक सीमित भोजन, प्रसंस्कृत आटा, जंक फूड और पैक्ड खाद्य पदार्थ हावी हो गए हैं। इस बदलाव ने हमें पोषण की दृष्टि से कमजोर किया है और मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग जैसी समस्याएँ बढ़ाई हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने बार-बार यह कहा है कि आहार विविधता पोषण सुधारने का सबसे प्रभावी उपाय है।
- थाली में जितने अधिक रंग होंगे, पोषक तत्व भी उतने अधिक होंगे।
- स्थानीय और मौसमी भोजन शरीर को प्राकृतिक संतुलन देता है।
- एक ही प्रकार के भोजन पर निर्भरता खतरनाक है।
5. अज्ञात पोषणीय जोखिम भविष्य की चुनौतियाँ
जैसे कभी स्कर्वी और बेरी-बेरी रहस्यमयी रोग थे, वैसे ही आज भी कई बीमारियों के पीछे पोषणीय कारण छिपे हो सकते हैं।
बच्चों में विकास की रुकावट (stunting) केवल प्रोटीन या विटामिन की कमी से नहीं, बल्कि अज्ञात सूक्ष्म पोषक तत्वों से भी जुड़ी हो सकती है।
बुज़ुर्गों में बार-बार संक्रमण होना शायद माइक्रोबायोम और भोजन के जटिल संबंध से जुड़ा हो।
कैंसर और हृदय रोग जैसे रोगों में भी अज्ञात पोषणीय कारकों की भूमिका हो सकती है।
इसलिए भोजन में विविधता बनाए रखना सबसे सुरक्षित उपाय है।
6. हमें क्या करना चाहिए?
रंग-बिरंगी थाली बनाएँ – हर भोजन में हरी, लाल, पीली और नारंगी सब्ज़ियाँ व फल शामिल करें।
अनाज में विविधता – गेहूँ-चावल के साथ बाजरा, ज्वार, रागी का प्रयोग करें।
दालें और प्रोटीन स्रोत – अलग-अलग दालें, अंकुरित अनाज, दूध और अंडे शामिल करें।
स्थानीय और मौसमी भोजन – जो फल-सब्ज़ी उस मौसम में उपलब्ध हो, वही सबसे पौष्टिक है।
प्रसंस्कृत भोजन से बचें – पैक्ड और जंक फूड केवल स्वाद देते हैं, पोषण नहीं।
लेखक: डॉ. इन्द्रेश कुमार, एम्स भोपाल।