नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरी और शिक्षा में 27% ओबीसी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट का मूड स्पष्ट समझ में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट अब किसी भी प्रकार की अंतिम राहत और टेंपरेरी सॉल्यूशन करने के मूड में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ओबीसी आरक्षण के मामले में फाइनल डिसीजन करना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को एक और मौका दिया है ताकि सभी लोग फाइनल आर्गुमेंट के लिए पूरी तैयारी करके आएं।
सुप्रीम कोर्ट किसी को समय देने के मूड में नहीं थी
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा छह दर्जन से अधिक मामले ट्रांसफर किए गए हैं, जिनमें से आज केवल 9 ट्रांसफर याचिकाओं और दो रिट याचिकाओं सहित कुल 11 मामले, छत्तीसगढ़ के मामलों के साथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल कुमार चंदोकर की खंडपीठ में सूची के शीर्ष पर थे। जैसे ही केस बुलाए गए, मध्यप्रदेश सरकार की ओर से दस्तावेज पेश करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा गया। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामले अर्जेंट प्रकृति के हैं, आप आज ही बहस करें।
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को अंतरिम आदेश देने से इनकार किया
अनारक्षित वर्ग के पैरोकार अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि हमें कल शाम को ही गूगल ड्राइव में लगभग 15 हजार पेज के दस्तावेज प्राप्त हुए हैं, जिनका अध्ययन करने में समय लगेगा। तब कोर्ट ने कहा कि आज कोई भी तैयार नहीं है, शायद आप लोग इन मामलों को मजाक बना रहे हैं। तब सरकार के विशेष अधिवक्ता पी. विल्सन ने कहा कि मैं तैयार हूं, यदि कोर्ट सुनवाई की तारीख बढ़ा रही है, तो छत्तीसगढ़ के मामलों में पारित अंतरिम आदेश लागू कर दिया जाए। तब कोर्ट ने कहा कि हम कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी वर्ग के वकीलों की मांग खारिज कर दी
ओबीसी वर्ग की ओर से पक्ष रखने वाले और होल्ड अभ्यर्थियों की ओर से याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि उन्होंने अपने साथी वरुण ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, उदय कुमार साहू के साथ कोर्ट को बताया कि आज सूचीबद्ध याचिकाओं की प्रचलनशीलता का परीक्षण कर लिया जाए, जिनमें ईडब्ल्यूएस आरक्षण को भी चुनौती देने वाली याचिकाएं हैं, साथ ही कुछ याचिकाएं अध्यादेश को चुनौती देने वाली हैं। इन्हें खारिज किया जाए और केवल कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को ही सुना जाए। तब कोर्ट ने कहा कि 8/10/2025 को ही परीक्षण किया जाएगा।
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह का कहना है कि, मध्यप्रदेश सरकार चाहे तो होल्ड पदों को नियुक्ति पत्र में शर्त जोड़कर कि उक्त नियुक्तियां याचिकाओं के अंतिम फैसले के अधीन रहेंगी, अनहोल्ड कर सकती है। यदि फैसला ओबीसी के खिलाफ आता है, तो उक्त नियुक्तियों को ओबीसी के रिक्त पदों के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है।
हालांकि यह फार्मूला दोनों पक्षों के HOLD अभ्यर्थियों पर लागू किया जा सकता है।