Gen-Z के बारे में चौंकाने वाली स्टडी रिपोर्ट, न्यूज़ और नॉलेज का सोर्स एवं फैक्ट चेक का तरीका क्या है

Bhopal Samachar
Gen-Z यानी की जेनरेशन-Z अब भारत में अध्ययन का विषय बन गए हैं। इनकी सोचने समझने का तरीका बिल्कुल अलग है। यह एक ऐसी पीढ़ी है जो पूरी तरह से इंटरनेट पर डिपेंड करती है, लेकिन इंटरनेट का उपयोग करने का इनका तरीका बिलकुल अलग है। इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि जेनरेशन-Z वाले भारतीय युवा इंटरनेट पर यदि किसी न्यूज़ और नॉलेज का फैक्ट चेक करना चाहते हैं तो उसका तरीका क्या होता है। 

Gen-Z कब और क्यों किसी ख़बर को वेरिफाई करते हैं? 

43% Gen-Z युवा मैसेजिंग ऐप पर फॉरवर्ड के माध्यम से प्राप्त होने वाली जानकारी को वेरीफाई करते हैं। किसी भी जानकारी को शेयर करने से पहले वेरीफाई करना पसंद करते हैं। जबकि 42% युवा ऐसे हैं जो, तब किसी जानकारी अथवा समाचार को वेरीफाई करते हैं जब उन्हें लगता है कि वह बहुत ज्यादा चौंकाने वाली है अथवा नाटकीय है। यह एक अच्छी बात है कि कम से कम 40% से अधिक युवा ऐसे हैं जो प्राप्त होने वाली सूचनाओं अथवा समाचारों को वेरीफाई करते हैं, लेकिन चिंता की बात है कि यह संख्या 50% से कम है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि 48% युवा ऐसे हैं जो जानकारी को वेरीफाई किए बिना ही सच मान लेते हैं और फॉरवर्ड कर देते हैं।

Gen-Z का फैक्ट चेक करने का तरीका

Gen-Z की वेरिफिकेशन प्रक्रिया का सबसे हैरान करने वाला पहलू यह है कि, 42% में से 57% यानी कि आधे से अधिक, जानकारी को क्रॉस-चेक करने के लिए सबसे ज़्यादा सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं। इसका मतलब हुआ की 42% पैसे मात्र 43% युवा ऐसे हैं जो किसी भी समाचार को वेरीफाई करने के लिए Google अथवा किसी भरोसेमंद न्यूज वेबसाइट या फिर न्यूज़ ऐप्स का उपयोग करते हैं। यह गंभीर चिंता की स्थिति है। क्योंकि 100 में से 58% युवा तो पैक चेक करते ही नहीं है, और जो 42% पैक चेक करते हैं उनमें से भी आधे से अधिक पैक चेक करने के लिए सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करते हैं।

Gen-Z किसी समाचार पर कब भरोसा करतेहैं

यह वेरिफिकेशन के लिए एक आधुनिक, नेटवर्क-आधारित दृष्टिकोण है। Gen-Z संस्थागत एवं प्रोफेशनल फैक्ट-चेकर्स पर निर्भर रहने के बजाय "सोशल मीडिया फैक्ट-चेक प्लेबुक" का इस्तेमाल करते हैं। इसमें वे यह देखते हैं कि क्या कई इन्फ्लुएंसर्स में एकरूपता है (Consistency Across Influencers) और सच्चाई का पता लगाने के लिए कमेंट सेक्शन में होने वाली "समुदाय-आधारित फैक्ट-चेकिंग" (Community-led Fact-checking) पर भरोसा करते हैं। 

निष्कर्ष 

100 में से 58 Gen-Z युवा उस समाचार पर भरोसा करते हैं जो उन्हें सबसे पहले मिल गया है। बचे हुए 42 में से 20 Gen-Z युवा ऐसे हैं, जो न्यूज़ को वेरीफाई करने के लिए सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफार्म पर डिपेंड करते हैं। इनका सिंपल फार्मूला होता है। सबसे ज्यादा लोग जो बात कर रहे हैं, वही सही है। इस प्रकार 100 में से सिर्फ 22 Gen-Z युवा ऐसे हैं, जिनको ठीक प्रकार से फैक्ट चेक करना आता है और जिनके पास किसी भी समाचार का मूल्यांकन करने के लिए अपना विवेक (Conscience) होता है। केवल 22 युवा ऐसे हैं जो इनफ्लुएंस नहीं होते बल्कि सच का पता लगाने के लिए उनके पास सवाल होते हैं और जब तक उन्हें जवाब नहीं मिलता तब तक वह संतुष्ट नहीं होते। 
यह Gen-Z की इंटरनेट एक्टिविटीज पर हुई एक महत्वपूर्ण स्टडी रिपोर्ट का हिस्सा है। प्रोटोकॉल के कारण स्टडी करने वाली संस्था का नाम प्रकाशित नहीं किया गया है। रिपोर्ट: उपदेश अवस्थी
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