मध्य प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने आज कांग्रेस पार्टी के नेता श्री राहुल गांधी की मानसिकता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने जिस प्रकार से भारत की संवैधानिक संस्था को बदनाम करने का काम किया है। यह एक प्रकार की अर्बन नक्सलाइट वाली मानसिकता है। सबसे पहले सुनिए और पढ़िए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का बयान और उसके बाद अपन डिस्कस करेंगे कि डॉ मोहन यादव के बयान का तात्पर्य क्या है? अर्बन नक्सलाइट वाली मानसिकता क्या होती है और नेता प्रतिपक्ष होते हुए भी राहुल गांधी किस प्रकार से ग्रे पॉलिटिक्स कर रहे हैं।
राहुल गांधी के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का बयान VIDEO
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के बारे में सार्वजनिक रूप से बयानबाजी की है, मुख्यमंत्री डॉ मोहन ने इसको उनकी मानसिक दिवालियापन की स्थिति बताया गया है। डॉ मोहन ने कहा कि, राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के बारे में भी बात की है और सेना का अपमान भी किया है। उनके चुनाव आयोग पर सार्वजनिक रूप से प्रश्न उठाने को शहरी नक्सलवादी मानसिकता बताया गया है। डॉ मोहन का मानना है कि राहुल गांधी को इस तरह के विचारों के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए। डॉ मोहन ने भारत के लोकतंत्र के तीन आधारभूत स्तंभों का भी उल्लेख किया।
डॉ मोहन यादव के बयान का तात्पर्य
राहुल गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए इसलिए भारत की सभी संवैधानिक संस्थाओं (न्यायपालिका एवं चुनाव आयोग इत्यादि) को टारगेट करके एक गंभीर अपराध कर रहे हैं। जबकि वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं और उनकी मर्यादा सरकार की गतिविधियों तक सीमित है। वह सरकार की नीतियों और फसलों की आलोचना कर सकते हैं। सवाल कर सकते हैं। यदि कोई गड़बड़ी मिलती है तो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं। परंतु संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ सार्वजनिक बयान बाजी, लोकतंत्र को कमजोर करने का काम है।
अर्बन नक्सलवाद की मानसिकता क्या होती है
अर्बन नक्सलाइट मानसिकता एक ऐसी अवधारणा है, जो गहरे वैचारिक और राजनीतिक विभाजन को दर्शाती है। यह शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है, जो शहरी क्षेत्रों में रहते हुए सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के खिलाफ बौद्धिक या वैचारिक स्तर पर काम करते हैं। ऐसे लोग प्रोपेगेंडा करते हैं कि वह समाज के हित में संघर्ष कर रहे हैं परंतु उनका उद्देश्य समाज का हित नहीं होता बल्कि उनका हित प्रभावित हो गया इसलिए व्यवस्था को डैमेज करने के लिए जनता को भड़काने का काम करते हैं।
राहुल गांधी: इस प्रकार की आपत्ति चुनाव के बाद नहीं चुनाव के पहले की जाती है
दरअसल राहुल गांधी राजनीति में अभी भी थोड़े कच्चे हैं। किसी भी चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा सभी पार्टियों को समीक्षा के लिए वोटर लिस्ट दी जाती है। राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी को भी दी गई थी। यदि कोई आपत्ति होती है तो संबंधित पक्ष द्वारा अभिव्यावेदन दिया जाता है। चुनाव आयोग संबंधित पक्ष की आपत्ति को दूर करने के बाद ही फाइनल वोटर लिस्ट जारी करते हैं। चुनाव परिणाम के बाद यदि किसी प्रत्याशी को आपत्ति होती है तो वह न्यायालय में चुनाव के परिणाम को चुनौती दे सकता है। उनकी पार्टी ने वोटर लिस्ट को सही बताया और चुनाव करवाया। रिजल्ट के बाद उनके प्रत्याशी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। अब राहुल गांधी जांच पड़ताल कर रहे हैं। जबकि उनके पास ऐसा कोई अधिकार ही नहीं है। वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। चुनाव आयोग में नेता प्रतिपक्ष नहीं है और चुनाव आयोग सरकार के अधीन नहीं आता। मल्लिकार्जुन खड़गे सहित सभी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को को यह बात ठीक प्रकार से पता है। इसलिए प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह बड़ी चतुराई के साथ अनुपस्थित रहे। केवल राहुल गांधी को दुनिया के सामने खड़ा कर दिया। ताकि उनको एक बात समझ में आ जाए, नेता प्रतिपक्ष हर मामले में सवाल नहीं उठा सकता है। उसकी अपनी मर्यादा होती है। उसे व्हाइट एरिया में रहना पड़ता है। वह ग्रे लाइन पर पॉलिटिक्स नहीं कर सकता।