वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के अनुसार याचिका क्रमांक WP 606/2025 (सुप्रीम कोर्ट) के माध्यम से प्रदेश के समस्त ओबीसी होल्ड अभ्यर्थियों द्वारा आरक्षण कानून का पालन करवाने और अंतरिम राहत हेतु याचिका दायर की गई है, जिसकी महत्वपूर्ण सुनवाई 22 सितंबर से होने की संभावना है। इस याचिका में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग को भी पक्षकार बनाया गया है।
दुर्भाग्य की बात यह है कि सरकार और आयोग की कथनी और करनी में अंतर है। एक ओर वे न्यायालय में खड़े होकर ओबीसी के लिए राहत मांगते हैं, दूसरी ओर लिखित जवाब में इसका विरोध करते हैं।19/08/2025 को MPPSC द्वारा कोर्ट में पेश काउंटर एफिडेविट (200483/2025) में आयोग ने ओबीसी अभ्यर्थियों की याचिका को खारिज करने और कोई अंतरिम राहत न देने का लिखित जवाब प्रस्तुत किया। जबकि आयोग को एक चयन एजेंसी होने के नाते तटस्थ रहना चाहिए था। आयोग अब ओबीसी विरोधी रवैया अपनाने को तत्पर है।
आयोग के विरोधी जवाब का अनुवादित हिस्सा पेज नंबर 2, 3 और 7 में उल्लेखित है:
"वर्तमान रिट याचिका अपरिपक्व है और इस मामले में उठाया गया मुद्दा माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है। अतः वर्तमान रिट याचिका माननीय न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाई जा सकती। याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों के हनन से संबंधित मुद्दा इस समय अपरिपक्व है, जबकि मुख्य मामले निर्णय हेतु लंबित हैं। अत्यंत सम्मानपूर्वक निवेदन है कि वर्तमान रिट याचिका में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए।"
"उपरोक्त पैराग्राफ के आलोक में, यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि याचिकाकर्ता को कोई राहत या अंतरिम राहत नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि अंतरिम राहत और राहत के आधार कानून की गलत व्याख्या और फैसलों के गलत अनुप्रयोग पर आधारित हैं। यह विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि इस तथ्य के मद्देनजर कि तत्काल याचिका रेनू अग्रवाल रजिस्टर्ड एनसी 17006/2019 पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि दिनांक 23/12/2022 की अधिसूचना नियुक्त सरकार द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप जारी की गई है। यह आगे प्रस्तुत किया जाता है कि याचिकाकर्ता, तत्काल याचिका में दी गई दलीलों के आधार पर, किसी भी अंतरिम राहत और मुख्य राहत का हकदार नहीं है। इसलिए, यह अत्यंत सम्मानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की जाती है कि यह माननीय न्यायालय याचिकाकर्ता द्वारा दायर वर्तमान याचिका को खारिज करने की कृपा करे।"
एक भर्ती एजेंसी होने के नाते आयोग को तटस्थ जवाब में केवल इतना लिखना चाहिए था:
"हम केवल एक भर्ती एजेंसी हैं। हमारे सारे कार्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून, नीति और निर्देशों के अनुसार संचालित होते हैं। अतः न्यायालय का जो भी निर्णय होगा, हम उसके अनुरूप कार्य करेंगे।"
इसके बजाय, आयोग ने सीधे तौर पर ओबीसी विरोधी रुख अपनाया है।