अंशुल मित्तल, ग्वालियर। फर्जी संपत्तिकर आईडी बनाकर, शहर की बेशकीमती जमीनों को भू माफिया के हवाले करने का खेल नगर निगम में बदस्तूर जारी है। बीते दिनों इस तरह के एक फर्जीवाड़े की सूचना कमिश्नर तक पहुंची थी, जिस पर वार्ड 58 के टीसी तरुण कुशवाह को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जिसके जवाब में तरुण कुशवाह ने 20 अगस्त को एक पत्र नगर निगम में आवक कराया। इस पत्र को यदि सही माने तो फर्जी आईडी बनाए जाने की असली जड़ मुख्यालय में ही है। हालांकि इस पत्र में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य भी कमिश्नर से छुपाए गए।
पत्र में अन्य फर्जी आईडी की जानकारी छुपाई गई
तरुण कुशवाह ने अपने पत्र में इस बात का उल्लेख किया है कि उनके कंसोल पर सामान्य अधिकारों से अधिक विकल्प प्रदर्शित हो रहे थे। 19 जून को इन्हें, इसकी जानकारी होने पर, मुख्यालय में उपेंद्र यादव को फोन कर अपने कंसोल में सुधार करवाया। लेकिन यहां यह छुपाया गया कि 19 जून को कंसोल बंद कराने से ठीक 1 दिन पहले 18 जून को एक और फर्जी आईडी इनके कंसोल से बनाकर वार्ड 63 में ट्रांसफर की गई। इसका आईडी नंबर 1000221431 है और इसके लिए 18 जून 2025 रात 7:00 बजे और 8:00 बजे के आसपास, संशोधन कर फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया था।
शो कॉज नोटिस के जवाब से, उपजते हैं कई सवाल
वार्ड 58 से एक फर्जी आईडी 15 जून को, वार्ड 64 के लिए बनाई गई, जिस पर कमिश्नर ने संज्ञान लिया। उसके बाद इसी वार्ड 58 से, वार्ड 63 के लिए, 18 जून को, दूसरी फर्जी आईडी बनाने के बाद 19 जून को पता चलता है कि कंसोल पर अधिक पावर है। इस पूरे घटनाक्रम से कई सारे बड़े सवाल खड़े होते हैं -
-यदि कंसोल पर अधिक पावर थे भी तो टीसी के पासवर्ड का इस्तेमाल कर फर्जी आईडी कैसे बनाई गई ?
-यदि तरुण कुशवाह ने यह कारनामा नहीं किया तो कमिश्नर को सौंपे गये जवाब में यह क्यों नहीं बताया गया कि इनका पासवर्ड, इनके अलावा और किस-किस के पास रहता है ?
-जब यह जानकारी मिल गई थी कि कंसोल पर अधिक पावर है तो क्या इन्हें यह जानकारी नहीं हो सकी कि इनके कंसोल से कितनी फर्जी आईडी, किन-किन वार्डों में ट्रांसफर हुईं, फर्जी आईडी के बारे में तत्काल जानकारी क्यों नहीं दी गई ?
-यदि जानकारी थी तो उसके बाद भी फर्जी आईडी के संबंध में कोई लिखित सूचना, तत्काल मुख्यालय में क्यों नहीं दी गई ?
-एक के बाद एक फर्जी आईडी सामने आने के बाद यदि और घोटाला सामने आता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा ?
निगम में आखिर क्यों बेखौफ हैं घोटालेबाज
निगम आयुक्त निरंतर निर्देश देते हैं कि "आवेदकों को बेवजह चक्कर नहीं लगवाए जाएं"। लेकिन हकीकत इसके उलट है। वैध नामांतरणों के लिए अपर आयुक्त लेवल के अफसर तक रिश्वत वसूलते हैं और इसके बाद भी आवेदक ठोकरें खाता है। दूसरी तरफ मोटा पैसा वसूल कर फर्जी आईडी तत्काल बना दीं जाती हैं। यहां भ्रष्टों पर कोई विशेष कार्रवाई न होने के चलते घोटालेबाज बेखौफ हैं ! सूत्रों के अनुसार निगम के वरिष्ठ अफसर, रिश्वतखोर और घोटालेबाजों पर कार्रवाई करने की बजाय, मीटिंग में उन्हें यह संदेश देते हैं कि "संभल के काम करो"।