USA-INDIA सहित 8 देशों में अचानक महंगाई के पीछे का रहस्य पढ़िए - Research Report

अगर आपने हाल के महीनों में सब्ज़ियों, प्याज़, आलू, या चाय-कॉफ़ी की कीमतों में असामान्य उछाल देखा है, तो यह केवल मंडी की मांग और आपूर्ति का मामला नहीं है। एक नई अंतरराष्ट्रीय रिसर्च के मुताबिक, भारत समेत दुनिया भर के 18 देशों में जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम की चरम घटनाओं ने खाने-पीने की चीज़ों की कीमतों में तेज़ी से बढ़ोतरी की है।

भारत, अमेरिका, यूके, इथियोपिया, ब्राज़ील, स्पेन, जापान, और दक्षिण कोरिया में महंगाई का कारण

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 से 2024 के बीच दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सूखा, हीटवेव, और अत्यधिक वर्षा जैसी घटनाओं ने फसलों को बर्बाद किया, जिससे खाद्य सामग्री के दाम बढ़े। यह अध्ययन Barcelona Supercomputing Centre ने वैज्ञानिक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ की अगुआई में किया है, जिसमें भारत, अमेरिका, यूके, इथियोपिया, ब्राज़ील, स्पेन, जापान, और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के आंकड़े शामिल हैं।

क्लाइमेट चेंज के कारण कहां किस प्रकार की महंगाई बढ़ी 

भारत: मई 2024 की हीटवेव के बाद प्याज़ और आलू की कीमतों में 80% तक उछाल आया। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह हीटवेव सामान्य से कम-से-कम 1.5°C अधिक गर्म थी और इसे "largely unique event" यानी एक असामान्य और गंभीर घटना माना गया। भारत जैसे देश में, जहाँ प्याज़ और आलू रोज़मर्रा की थाली का आधार हैं, इस तरह की बढ़ोतरी आम लोगों की रसोई पर सीधा असर डालती है।
यूके: जनवरी से फरवरी 2024 के बीच आलू की कीमतें 22% बढ़ीं। इसकी वजह थी सर्दियों में हुई ज़बरदस्त बारिश, जिसे वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन से जोड़ा — यह बारिश 20% ज़्यादा और 10 गुना ज़्यादा संभावित थी जलवायु परिवर्तन के कारण।
अमेरिका (कैलिफ़ोर्निया और एरिज़ोना): 2022 की गर्मियों में सूखे और पानी की भारी किल्लत के चलते सब्ज़ियों की कीमतो में नवंबर 2022 तक 80% की बढ़ोतरी हुई।
इथियोपिया: 2022 के ऐतिहासिक सूखे के बाद, मार्च 2023 में खाद्य वस्तुओं के दाम 40% अधिक थे, यह सूखा 40 वर्षों में सबसे भयानक था और जलवायु परिवर्तन ने इसे "करीब 100 गुना ज़्यादा संभावित" बना दिया।
स्पेन और इटली: 2022-2023 के सूखे के बाद, जैतून के तेल की कीमतें EU में 50% तक बढ़ गईं। जबकि स्पेन दुनिया का सबसे बड़ा जैतून तेल उत्पादक है।
आइवरी कोस्ट और घाना: 2024 की शुरुआत में हीटवेव के बाद कोको की वैश्विक कीमतें 280% तक बढ़ गईं। इन दो देशों से दुनिया का 60% कोको आता है, जिससे चॉकलेट बनती है।
ब्राज़ील और वियतनाम: 2023 में ब्राज़ील में पड़े सूखे और वियतनाम में 2024 में रिकॉर्ड हीटवेव के चलते कॉफी की कीमतें क्रमशः 55% और 100% तक बढ़ीं।
जापान: अगस्त 2024 की हीटवेव के बाद चावल की कीमतें 48% बढ़ीं — यह देश का अब तक का सबसे गर्म ग्रीष्मकालीन मौसम था।
दक्षिण कोरिया: अगस्त 2024 की गर्मी के बाद गोभी की कीमतें 70% तक बढ़ गईं। यह अब तक का सबसे गर्म रिकॉर्डेड ग्रीष्मकाल था।
पाकिस्तान: अगस्त 2022 की बाढ़ के बाद ग्रामीण इलाकों में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 50% की बढ़ोतरी हुई। इस दौरान मानसून की बारिश औसत से 547% अधिक थी।
ऑस्ट्रेलिया: 2022 में बाढ़ के बाद लेट्यूस की कीमतें 300% तक बढ़ गईं — यह देश के इतिहास की सबसे बड़ी बाढ़ बीमा दावे वाली घटना थी।

Food Foundation महंगाई के कारण डायबिटीज और कैंसर का खतरा

Food Foundation के मुताबिक, दुनिया भर में पोषण से भरपूर खाना कम पौष्टिक खाने के मुकाबले प्रति कैलोरी दोगुना महंगा है। ऐसे में, जब महंगाई बढ़ती है, तो कम आय वाले परिवार फल-सब्ज़ियाँ छोड़कर सस्ता, लेकिन पोषणहीन खाना अपनाने लगते हैं। इससे बच्चों में कुपोषण और बड़ों में दिल की बीमारियों, डायबिटीज़, और कैंसर जैसे खतरे बढ़ते हैं। रिपोर्ट यह भी कहती है कि खाद्य असुरक्षा और खराब डाइट का मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है।

भारत और दक्षिण एशिया के लिए सबक

भारत जैसे देश में, जहाँ आबादी का बड़ा हिस्सा पहले से ही पोषण की कमी और स्वास्थ्य असमानताओं से जूझ रहा है, खाद्य कीमतों में ऐसी उथल-पुथल का मतलब है दोहरी मार - एक तरफ़ जलवायु संकट और दूसरी तरफ़ स्वास्थ्य संकट।

UN Food Systems Summit के लिए सब्जेक्ट

यह रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है, जब 27 जुलाई को होने वाले UN Food Systems Summit में दुनिया के नेता खाद्य प्रणाली की चुनौतियों पर चर्चा करने वाले हैं। यह बैठक इथियोपिया और इटली की मेज़बानी में हो रही है — दो देश, जो ख़ुद इस अध्ययन में प्रभावित देशों में शामिल हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ ने चेतावनी दी:

“जब तक हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पूरी तरह बंद नहीं करते, ये चरम मौसमी घटनाएँ और बढ़ेंगी। और इनका असर सीधे आपकी थाली पर पड़ेगा।”

यह एक चेतावनी है, साथ ही एक स्पष्ट संकेत भी - जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ़ भविष्य की चिंता नहीं है, यह आपके आज की रसोई का संकट बन चुका है।
अब सवाल यह है कि हम इस सच्चाई को कब स्वीकार करेंगे और कब कार्रवाई करेंगे? क्योंकि अगर मौसम ही खेती नहीं चलने दे रहा, तो थाली भरने की जंग अब और कठिन होने वाली है।
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