जबलपुर स्थित हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा एवं न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने सभी कलेक्टर को नोटिस जारी करके एक महीने में स्टेटस रिपोर्ट मानी है। मामला तो पोषण का है जिसके लिए सरकार ने हजारों करोड़ों रुपए खर्च कर दिए हैं परंतु मध्य प्रदेश को कुपोषण से मुक्ति नहीं मिली है। उल्टा कुछ अधिकारियों और ठेकेदारों की तोंद निकल आई है।
2025 में कुपोषित बच्चों की संख्या में 3% की वृद्धि हुई है
जबलपुर के दीपांकर सिंह ने हाईकोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की थी। मामला मध्य प्रदेश शासन के महिला एवं बाल विकास विभाग से संबंधित है। दीपांकर सिंह की तरफ से उनके वकीलों ने कोर्ट को बताया कि सरकार और प्रशासन सिर्फ आंकड़ों का खेल खेल रहे हैं। असली स्थिति बहुत ही खराब है, लेकिन उसे छुपाया जा रहा है। बच्चे कमजोर हो रहे हैं, लेकिन सरकार सिर्फ रिपोर्टों में अच्छी तस्वीर दिखा रही है। याचिका में बताया गया कि सरकारी पोषण योजनाओं में प्रोटीन और विटामिन की कमी है, जिससे बच्चे कमजोर, ठिगने और बीमार हो रहे हैं। पोषण ट्रैकर 2.0 और हेल्थ सर्वे के मुताबिक, 2025 में कुपोषित बच्चों की संख्या में 3% की बढ़त हुई है।
मध्य प्रदेश में सिर्फ 2025 में 858 करोड़ रुपए का पोषण घोटाला: CAG
इसके अलावा, बच्चों और महिलाओं के लिए जो पोषण आहार भेजा जाता है, उसके वितरण और ट्रांसपोर्ट में भी बड़ी गड़बड़ियां हो रही हैं। कैग (CAG) की रिपोर्ट में बताया गया कि पोषण आहार के नाम पर साल 2025 में 858 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है, लेकिन जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
10 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार, 57% महिलाएं एनीमिया से पीड़ित
मध्यप्रदेश में 66 लाख छोटे बच्चे (0-6 साल के) हैं, जिनमें से 10 लाख से ज्यादा कुपोषित हैं। इनमें 1.36 लाख बच्चे गंभीर रूप से कमजोर हैं। वहीं, महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) की दर 57% है, जो बहुत ज्यादा है।
मध्य प्रदेश में गरीब बच्चों का पोषण आहार अधिकारी का जाते हैं
याचिका में यह भी बताया गया कि जबलपुर में आंगनबाड़ी केंद्रों के किराए के नाम पर 1.80 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, जबकि वहां बच्चों की उपस्थिति बहुत कम है। एक आंगनबाड़ी केंद्र में 40-50 बच्चों का रजिस्ट्रेशन होता है, लेकिन आते सिर्फ कुछ ही हैं। इसके बावजूद पूरे बच्चों के हिसाब से खाने और सुविधाओं का पैसा लिया जा रहा है। यह सीधा भ्रष्टाचार है।
रीवा और विदिशा जैसे घोटाले पूरे प्रदेश में
रीवा जिले में पोषण आहार को गंदे तरीके से (पैरों से रौंदकर) तैयार करते हुए एक वीडियो वायरल हुआ था। वहीं विदिशा जिले में बच्चों की लंबाई ज्यादा दिखाकर झूठी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी गई थी। ऐसी गड़बड़ियां बाकी जिलों में भी हो रही हैं।
कलेक्टरों की गड़बड़ी कलेक्टर बताएंगे?
यह मामला महिला बाल विकास विभाग से संबंधित है और महिला बाल विकास विभाग का अधिकारी जिले के कलेक्टर को रिपोर्ट करता है। यदि किसी जिले में कोई गड़बड़ी हो रही है तो इस बात में कोई डिबेट नहीं है कि उस जिले के कलेक्टर को, उसके बारे में पूरी जानकारी होगी। क्योंकि मध्य प्रदेश में कुछ और ठीक हो या ना हो लेकिन कलेक्टर का इनफॉरमेशन नेटवर्क बड़ा तगड़ा होता है। हाई कोर्ट में कलेक्टरों से ही रिपोर्ट मांगी है क्योंकि और कोई विकल्प भी नहीं है। अब देखना यह है कि क्या पिछले कलेक्टर की गड़बड़ी को, नया कलेक्टर अपनी रिपोर्ट में बताएगा जबकि वर्तमान कलेक्टर पर भी गड़बड़ी के आरोप हैं।