INTERNATIONAL COURT OF JUSTICE ने स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु संकट से लोगों की रक्षा करना सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है। यानी की जलवायु संकट के कारण लोगों को जो नुकसान होता है, उसका मुआवजा देने के लिए सरकार कानूनी रूप से जिम्मेदार है। यहां उल्लेख करना जरूरी है कि, केंद्र और राज्य सरकारों में प्रमुख पदों पर बैठे हुए लोग जलवायु संकट को स्वीकार करने के लिए भी तैयार नहीं होते। एक बड़े नेता का तो यहां तक कहना था कि जलवायु खराब नहीं हुई है बल्कि लोगों की सहनशक्ति कम हो गई है।
जलवायु की रक्षा आंदोलन नहीं, बल्कि कानून की बात है: अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), यानी दुनिया की सबसे बड़ी अदालत, ने एक ऐतिहासिक सलाह दी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि दुनिया के प्रत्येक देश की यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वे जलवायु संकट को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। कोई बहाना स्वीकार्य नहीं होगा। अब यह केवल वैज्ञानिक चेतावनी या युवाओं का आंदोलन नहीं है, बल्कि कानून की बात है।
island vanuatu के युवाओं ने दुनिया हिला दी
यह कहानी शुरू हुई थी एक छोटे से द्वीप देश वानुआतु से, जहां के युवाओं ने यह सवाल उठाया: "क्या हमारी सरकारें जलवायु संकट से हमारी रक्षा करने की कानूनी जिम्मेदारी निभा रही हैं?" इसी सवाल को 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ICJ के सामने रखा। और आज, दुनिया भर के 100 से अधिक देशों की दलीलें सुनने के बाद, ICJ ने यह ऐलान किया है:
"प्रत्येक देश को अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को तेजी से कम करना होगा और कोयला, तेल, गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों से छुटकारा पाना होगा। अन्यथा, वे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करेंगे।"
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे पृथ्वी, जलवायु न्याय और उन युवाओं के लिए एक "ऐतिहासिक जीत" बताया है, जो लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
मुद्दा स्पष्ट है: पेरिस समझौते में तय 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य केवल एक सुझाव नहीं है, बल्कि एक अनिवार्य पैमाना है, जिसके आधार पर नीतियां बनानी होंगी।
6 अदालतों ने जलवायु को मानव का अधिकार बताया
ICJ का यह फैसला अकेला नहीं है। इससे पहले नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, बेल्जियम, अंतर-अमेरिकी मानवाधिकार न्यायालय, और यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय जैसे कई मंचों ने भी यही कहा है, यदि सरकारें जलवायु परिवर्तन को रोकने में नाकाम रहती हैं, तो यह केवल नीतिगत असफलता नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन है। कानून अब लोगों के साथ खड़ा है।
क्लाइमेट लिटिगेशन नेटवर्क की सह-निदेशक सारा मीड ने कहा:
"यह फैसला उस उम्मीद को वैधता देता है, जो दुनिया के अधिकांश लोग अपनी सरकारों से रखते हैं—कि वे हमारी और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए जलवायु पर ठोस कदम उठाएंगी।"
आज के हालात में, जब अधिकांश देशों की जलवायु योजनाएं अधूरी और कमजोर हैं, यह कानूनी राय नई उम्मीद और ताकत देती है। स्विट्जरलैंड जैसे देशों पर भी अब दबाव बढ़ेगा, जो कोर्ट के पुराने फैसलों को चुनौती दे रहे हैं।
ग्रीनपीस स्विट्जरलैंड के जॉर्ज क्लिंगलर ने कहा:
"ICJ ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रत्येक देश का कानूनी कर्तव्य है कि वह जलवायु संकट से सबसे अधिक प्रभावित लोगों और भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा करे।"
अब जवाबदेही का मौसम आ गया है
अब जब बेल्जियम, फ्रांस, कनाडा, तुर्की, पुर्तगाल, न्यूजीलैंड, और कई अन्य देशों में जलवायु मुकदमे चल रहे हैं, यह सलाह एक तरह का कानूनी और नैतिक दिशासूचक बन सकती है। इससे कार्यकर्ता, समुदाय और आम लोग अपने अधिकारों के लिए और मजबूती से खड़े हो सकेंगे। यानी अब मौसम की तरह सरकारों के मूड बदलने का समय नहीं है, अब जवाबदेही का मौसम आ गया है।