अंशुल मित्तल, ग्वालियर। नगर निगम के संपत्ति कर की फर्जी आईडी बनाने का खेल बदस्तूर जारी है। यातायात नगर स्थित एक संपत्ति की फर्जी आईडी बनाए जाने का मामला सामने आया है, जिसकी शिकायत कमिश्नर तक पहुंची है। हालांकि, यह पहला मामला नहीं है; पूर्व विधानसभा क्षेत्र के कई वार्डों में भी इस तरह के घोटाले लगातार किए जा रहे हैं।
यातायात नगर वार्ड 64 में स्थित एक संपत्ति की फर्जी संपत्ति कर आईडी सामने आई। इस फर्जी आईडी को बनाने में वार्ड 58 के कर संग्रहक के पासवर्ड का उपयोग किया गया। जांच में वार्ड 58 के टीसी तरुण राजावत ने कहा कि उनका पासवर्ड वार्ड में कई लोगों के पास रहता है। पूरे घोटाले में फरवरी 1993 की एक संदिग्ध नोटरी का इस्तेमाल किया गया, जो फर्जी प्रतीत होती है। 1000253294 नंबर की यह फर्जी संपत्ति कर आईडी सुभाष चंद्र खुशीरमानी के नाम पर बनाई गई, जिसमें उन्हें 2200 वर्ग फुट संपत्ति का मालिक बताया गया है। इसी तरह का एक और घोटाला वार्ड 63 में हुआ, जिसमें भी वार्ड 58 के टीसी तरुण कुशवाह का पासवर्ड इस्तेमाल किया गया।
वार्ड नंबर 28 और 30 में भी फर्जी आईडी बनीं
वार्ड नंबर 28 के बजरिया थाटीपुर, आनंद नगर के पते पर काबिज राजवीर सिंह के नाम से 1250 वर्ग फुट जमीन की फर्जी संपत्ति कर आईडी नोटरी के आधार पर बनाई गई। इसके अलावा, वार्ड नंबर 30 के अनुपम नगर क्षेत्र में 900 वर्ग फुट भूमि की फर्जी संपत्ति कर आईडी विनोद कुमार शर्मा के नाम से संदिग्ध दस्तावेजों और नोटरी के आधार पर बनाई गई। इनमें से कुछ संपत्तियां सरकारी बताई जा रही हैं।
अनट्रेंड कर्मचारियों की नियुक्ति से होता है भ्रष्टाचार
संपत्ति कर की फर्जी आईडी के ये मामले महज उदाहरण हैं। वर्षों से नगर निगम में इस तरह के घोटाले हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि नगर निगम में संपत्ति कर विभाग के महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाता है, जिनमें से अधिकतर को सॉफ्टवेयर चलाना नहीं आता। इसके अलावा, विभाग ने भी कई वर्षों से कर्मचारियों को इस संबंध में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं दिया। नतीजतन, पद पर बैठे कर्मचारी बाहरी लोगों को अपना पासवर्ड सौंप देते हैं और उनके माध्यम से सरकारी काम कराते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि बाहरी लोगों की आड़ में घोटाले किए जाते हैं।
करोड़ों के जमीन घोटालों में लाखों के भागीदार निगम के भ्रष्टाचारी
एक तरफ आम आदमी को अपना वैध नामांतरण कराने के लिए नगर निगम में दर-दर भटकना पड़ता है, वहीं दूसरी तरफ, फर्जी आईडी बनवाने के लिए, यदि सेटिंग हो जाए तो कुछ लाख रुपये लेकर चंद घंटों में जमीन की फर्जी आईडी बना दी जाती है। इससे करोड़ों रुपये की जमीन को ठिकाने लगाया जा सकता है, भले ही वह सरकारी जमीन ही क्यों न हो। ग्वालियर शहर में यह सिलसिला लगातार चल रहा है।