भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्रांति के लिए भारी बिजली उत्पादन की नहीं, बल्कि बेहतर योजना और स्मार्ट नीतियों की जरूरत है। Energy Think Tank 'Ember' की नई रिपोर्ट बताती है कि यदि सही नीतिगत बदलाव किए जाएं और चार्जिंग ढांचे को समय के अनुसार ढाला जाए, तो 2032 तक सौर और पवन क्षमता का केवल तीन प्रतिशत हिस्सा ही देश भर के ईवी को चार्ज करने के लिए पर्याप्त होगा।
Time-of-day tariff
रिपोर्ट में 2030 और 2032 के दो ईवी स्टॉक अनुमानों के आधार पर विश्लेषण किया गया है। इसमें अनुमान लगाया गया है कि 2032 में देश में ईवी चार्जिंग के लिए लगभग 15 गीगावॉट बिजली की आवश्यकता होगी, जो कुल निर्धारित क्षमता का मात्र 3% है। हालांकि, यह तभी संभव होगा जब ईवी चार्जिंग को 'सोलर अवर' के हिसाब से शिफ्ट किया जाए और टाइम-ऑफ-डे (टीओडी) टैरिफ जैसी योजनाएं बड़े पैमाने पर लागू की जाएं।
एम्बर की ऊर्जा विश्लेषक रुचिता शाह बताती हैं,
“अभी ज्यादातर ईवी की चार्जिंग शाम या रात में घरों पर होती है, जब बिजली उत्पादन में कोयले का हिस्सा अधिक होता है। यदि चार्जिंग को दिन में किया जाए, जैसे कार्यालयों या वाणिज्यिक हब्स में, तो सौर ऊर्जा का बेहतर उपयोग संभव होगा।”
शाह मानती हैं कि इसके लिए कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाने और टीओडी टैरिफ जैसे स्मार्ट उपाय अपनाने होंगे।
इन राज्यों में TOD लागू है
असम, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही सोलर-आवर आधारित टीओडी टैरिफ लागू किए हैं। रिपोर्ट में दस राज्यों को चुना गया है, जिनमें ईवी बिक्री की दृष्टि से वित्त वर्ष 2025 में सबसे अधिक संभावनाएं हैं: असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश।
Data is important along with privacy
रिपोर्ट में चार्जिंग से जुड़े डेटा को बेहतर तरीके से एकत्र और विश्लेषित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। शाह ने कहा, “उपभोक्ता की गोपनीयता बनाए रखते हुए यदि चार्जिंग डेटा एकत्र और समेकित किया जाए, तो वितरण कंपनियां ईवी की बिजली मांग का पहले से अनुमान लगा सकेंगी।”
The challenge is not charging, but strategy:
रिपोर्ट संकेत देती है कि ईवी चार्जिंग से ग्रिड की लचीलापन बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा के बेहतर समावेश का अवसर है। हालांकि, ग्रीन टैरिफ जैसे विकल्प घरेलू चार्जिंग पर अभी लागू नहीं हैं और लागत-संवेदनशील उपभोक्ताओं को आकर्षित नहीं करते।
शाह के अनुसार, “जिन राज्यों में ईवी की खरीद अधिक है, वे इस क्षेत्र को नवीकरणीय ऊर्जा मांग का प्रमुख ड्राइवर बना सकते हैं। इससे न केवल स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रिड की लचीलापन भी बेहतर होगा।”
At the end:
भारत में ईवी परिवर्तन की सफलता केवल बैटरी और चार्जर तक सीमित नहीं है। इसकी कुंजी है, नीतिगत स्पष्टता, डेटा पर आधारित योजना, और चार्जिंग ढांचे को स्वच्छ ऊर्जा के साथ जोड़ने की समझदारी। यदि यह दिशा अपनाई गई, तो कम संसाधनों में अधिक हासिल किया जा सकेगा, और बिजली की इस नई मांग को भी जलवायु-समर्थक दिशा में मोड़ा जा सकेगा।