BBC - British Broadcasting Corporation के Tokyo correspondent, Shaimaa Khalil कीएक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के प्रेसिडेंट डॉनल्ड ट्रंप के कारण जापान में 1955 से लगातार सत्ता में स्थापित पार्टी अब खतरे में आ गई है। जनता नाराज है और प्रधानमंत्री की कुर्सी हिलने लगी है। क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप की पॉलिसी के कारण जापान में लगातार महंगाई बढ़ती जा रही है और जापान की सरकार के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है।
प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा और सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए मुश्किल समय
BBC की रिपोर्ट में बताया गया है कि, जापान में रविवार को वोटिंग हुई। इस बार कांटे का मुकाबला देखा जा रहा है। जनता में सरकार के प्रति गुस्सा दिखाई दे रहा है। सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) और उसकी छोटी गठबंधन सहयोगी कोमेइतो को ऊपरी सदन में समग्र बहुमत बनाए रखने के लिए 50 सीटें हासिल करने की जरूरत है, लेकिन नवीनतम सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वे इससे कम रह सकते हैं। यह चुनाव प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा और उनके सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए मुश्किल समय में हो रहा है। इशिबा की मध्यम-दक्षिणपंथी पार्टी 1955 से लगभग लगातार जापान पर शासन कर रही है। अब तक केवल पार्टी के नेताओं में परिवर्तन हुआ करता था लेकिन इस बार पार्टी की पोजीशन खतरे में है।
जापान की जनता प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा से नाराज क्यों है
प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा और उनकी पार्टी के पास अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी का कोई जवाब नहीं है। वह लगातार टोक्यो पर दबाव बढ़ा रहे हैं। जापान का ऑटोमोबाइल सेक्टर, देश की 8% आबादी को रोजगार देता है। ऑटोमोबाइल्स पर पहले से ही बहुत अधिक टैक्स है। पिछले सप्ताह के कमजोर निर्यात आंकड़ों ने डर पैदा किया है कि दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तकनीकी मंदी में जा सकती है। हालांकि इशिबा ने फरवरी में ट्रम्प के साथ शुरुआती बैठक हासिल की और अपने व्यापार दूत को सात बार वाशिंगटन भेजा, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका।
जापान में जनता के लिए खाने की कमी
जापानी परिवारों के लिए मुख्य भोजन चावल है लेकिन पिछले 1 साल में चावल की कीमत है दोगुनी हो गई है। पिछले कुछ महीनों से सरकार को चावल की कमी से निपटने के लिए अपने आपातकालीन भंडार का उपयोग करना पड़ रहा है। अमेरिका की तरह जापान में भी "Japanese First" का नारा गूंज रहा है। यदि इशिबा का सत्तारूढ़ गठबंधन 50 सीटें हासिल करने में विफल रहता है, तो वह संसद के दोनों सदनों में बहुमत खो देगा, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता खतरे में पड़ सकती है और राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।