हम सब जानते हैं कि, सूर्य और उसके सभी ग्रहों की उत्पत्ति कैसे हुई। पृथ्वी पर जीवन कब और कहां से शुरू हुआ। डायनासोर कहां पैदा हुए। मनुष्यों ने अपनी पहली कॉलोनी कहां पर बने। लेकिन बहुत सारे लोग यह नहीं जानते कि नागलोक अर्थात नागवंश की स्थापना कहां हुई। नागवंश की कहानी क्या है। क्या लोग जो कथाएं सुनते हैं, उनका कोई ऐतिहासिक महत्व भी है। आज हम आपको दो इतिहासकारों की पुष्टि के साथ बताएंगे। नागवंश का प्रारंभ कहां पर हुआ और नागवंश के संस्थापक कौन थे।
नागवंश का इतिहास
भारतीय इतिहास संकलन समिति,मध्य भारत,भोपाल द्वारा प्रकाशित "युग युगीन रायसेन" पुस्तक के लेखक वरिष्ठ इतिहासकार पंडित राजीव लोचन चौबे ने अपनी पुस्तक में नागवंश के संबंध में तथ्यात्मक जानकारी दी है जिसके अनुसार- सातवाहन राजाओं के काल में ही रायसेन-विदिशा क्षेत्र में नागवंश का उदय हो गया था। यह नाग, शैव मातावलंबी एवं बड़े पराक्रमी थे। उनकी मुद्राओं में ताल वृक्ष का चित्र पाया जाता है। संभव है कि इनके पूर्वज ताड़ वनों वाले समुद्र तटीय क्षेत्र से यहां आए हों। ईसा की दूसरी शताब्दी के अंतिम चरण में जब मध्य भारत के दक्षिण क्षेत्र में राजनैतिक उथल-पुथल चल रही थी उस समय वर्तमान मध्य प्रदेश के रायसेन, विदिशा और ग्वालियर क्षेत्र में इस नए राजवंश का उदय हुआ। जोकि नाग वंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
नाग वंश के संस्थापक कौन थे
सिक्कों के आधार पर ज्ञात होता है कि नागवंश की स्थापना वर्तमान मध्य प्रदेश के रायसेन-विदिशा क्षेत्र में हुई थी। कालांतर में उनकी शाखाओं का विस्तार हुआ। नागवंश के संस्थापक वृष नाग थे। जिसने ई.सं. की दूसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में इस वंश की नींव डाली। यहां के नागों को पुराणों में वृष कहा जाता है। विदिशा से वृषनाग के सिक्के मिले हैं। उत्खनन से प्राप्त सिक्कों से विदिशा नागवंश का केंद्र होना सिद्ध होता है।
पृथ्वी पर नागवंश के अंतिम शासक कौन थे
भीमनाग ने संभवत विदिशा से पद्मावती को राजधानी बनाया गया था जिसके पश्चात स्कंद नाग, वसुनाग तथा बृहस्पति नाग राजा हुए। बृहस्पति का राज्य काल ई. सन की तीसरी शताब्दी के अंत में समाप्त हो गया। पद्मावती के अंतिम छह राजा विभुनाग, रविनाग, प्रभाकर नाग, भवनाग, देवनाग तथा गणपति नाग थे। इन सभी के सिक्के पवाया में मिले हैं। रविनाग का एक नए प्रकार का सिक्का ऐरण में मिलता है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ लेख में उन शासकों की सूची में जिन्हें समुद्रगुप्त ने उच्छेद किया था। गणपति नाग का नाम आया है। संभवत गणपति नाग इस वंश का अंतिम शासक थे, जिनको पराजित कर समुद्रगुप्त द्वारा नाग राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया गया था।
कांतिपुरी में नागवंश का खजाना मिला था
समुद्रगुप्त के एक अभिलेख में आर्यावर्त के नागदत्त और नागसेन नामक दो शासकों का उल्लेख भी आया है। नागदत्त के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, परंतु नागसेन का उल्लेख पद्मावती के राजा के रूप में बाण रचित हर्ष चरित में आया है परंतु उनके शासन के कोई भी सिक्के अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। विदिशा और पद्मावती के अतिरिक्त पुराणों के अनुसार कांतिपुरी (आधुनिक कुतवार) में भी नागों की एक राजधानी थी। कुतवार से प्राप्त नाग शासकों के 1859 सिक्कों की एक विशाल निधि से यही बात प्रमाणित होती है। इस काल की गंगा नदी की एक मूर्ति विदिशा में मिली थी जो आजकल बोस्टन अमेरिका के संग्रहालय में रखी हुई है।
पंडित राजीव लोचन चौबे ने जंगलों में बिखरी प्राचीन नाग प्रतिमाएं एकत्रित की
रायसेन के आसपास गांव में नाग प्रतिमाएं पर्याप्त संख्या में मिलती हैं। रायसेन एवं विदिशा जिलों के अनेंक गांवो में काफी प्राचीन नाग प्रतिमाएं हैं जो रायसेन स्थित पुरातत्व संग्रहालय में प्रदर्शित हैं। इन ऐतिहासिक नाग प्रतिमाओं को "युग युगीन रायसेन" के लेखक पंडित राजीव लोचन चौबे द्वारा संग्रहित कर वहां पहुंचाई गई हैं। नागवंश का इतिहास आज तक अस्पष्ट है। अभी भी इस पर गहरे शोध की आवश्यकता है।
डॉक्टर नारायण व्यास, विश्व प्रसिद्ध पुरातत्वविद और इतिहासकार का बयान
वर्तमान मध्यप्रदेश के रायसेन-विदिशा जिले का संबंध नागवंश काल से रहा है। जिले के कई स्थानों और बरेली क्षेत्र सहित कई गांवों में प्राचीन बहुत सुन्दर नाग युग्म प्रतिमाएं हैं, जो नौवीं शताब्दी के लगभग की है। इससे प्रमाणित होता है कि इस क्षेत्र का संबंध नागवंश से रहा है। बरेली क्षेत्र के जामगढ़-भगदेई गांवों में अति प्राचीन देवी माँ के मठ की दीवार पर लगी सुन्दर नागजोड़े की युग्म प्राचीन प्रतिमा काफी आकर्षित है।
पंडित राजीव लोचन चौबे, लेखक एवं इतिहासकार का बयान
रायसेन और विदिशा क्षेत्र का गौरवशाली इतिहास है। इन क्षेत्रों में नागवंश का प्रभाव रहा है। गांव-गांव नाग युग्म प्राचीन प्रतिमाएँ मिलती हैं। कुछ प्राचीन नाग प्रतिमाओं को हमने रायसेन के पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित कराया है। जिले भर में बिखरी हुई प्रतिमाओं को सुरक्षित करने का प्रयास है ताकि आने वाली पीढ़ियों को अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलती रहे।
रायसेन में नाग पंचमी के दिन रोटी नहीं बनती
रायसेन क्षेत्र के गांवाें में ऐसी परंपरा है कि नाग पंचमी पर राेटी नहीं बनाई जाती और ना ही खीर बनाई जाती है। इस दिन घराें में पूरी या बाटी बनाई जाती है। यह परंपरा कब स्थापित हुई, क्यों स्थापित की गई, इसके पीछे की कथा क्या है। या किसी को भी नहीं मालूम, लेकिन परंपरा है और पालन किया जा रहा है।
उद्घोषणा: उपरोक्त जानकारी बरेली रायसेन के प्रतिष्ठित पत्रकार कमल याज्ञवल्क्य द्वारा दोनों इतिहासकारों से प्राप्त की है एवं संग्रहालय में उपलब्ध साक्ष्यों से इसकी पुष्टि की है।