Legal advice सभी सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के लिए: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 की नई व्याख्या

Prevention of Corruption Act
अर्थात भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी भी सरकारी अधिकारी अथवा कर्मचारियों को रिश्वत देना और उसके द्वारा रिश्वत लेना, दोनों अपराध है, लेकिन हम आपको बताते हैं कि, बात सिर्फ इतनी सी नहीं है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 की व्याख्या को लेकर भारत में लगातार दो पक्ष मजबूत स्थिति में रहे हैं। नवंबर 2025 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस बारे में लैंडमार्क जजमेंट दिया है।

PC Act Sec. 12 के तहत रिश्वत देने का प्रयास कब माना जाएगा

इस बात को लेकर कानून की दो प्रकार की व्याख्याएं और हाईकोर्ट के दो प्रकार के निर्णय सामने आते हैं। केरल, बॉम्बे और इलाहाबाद हाईकोर्ट का मानना है कि, जब तक कोई व्यक्ति हाथ में रुपए अथवा कोई वस्तु लेकर किसी अधिकारी या कर्मचारी को देने का प्रयास न करें तब तक, Sec. 12 के तहत रिश्वत देने की कोशिश का अपराध नहीं माना जा सकता। जबकि मध्य प्रदेश और मद्रास हाई कोर्ट का कहना है कि, किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को किसी भी प्रकार से रिश्वत की पेशकश करना, गंभीर अपराध है। फिर चाहे रिश्वत की पेशकश करने वाले व्यक्ति के हाथ में रुपए अथवा कोई वस्तु हो या ना हो। 

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 की परिभाषा एवं विवरण 

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (The Prevention of Corruption Act, 1988) की धारा 12 (Sec. 12) एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मुख्य अपराध (जैसे रिश्वत लेना या देना) के सहायक या उत्प्रेरक कृत्यों से संबंधित है।
धारा 12 दुष्प्रेरण (Abetment) के अपराध और उसके लिए दंड को परिभाषित करती है।
धारा 12 उन व्यक्तियों को दंडित करती है जो अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध को करने के लिए दुष्प्रेरण करते हैं।
1. अपराध का स्वरूप: जो कोई भी इस अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का दुष्प्रेरण (abets) करता है।
2. परिणाम की अप्रासंगिकता: यह मायने नहीं रखता कि जिस अपराध का दुष्प्रेरण किया गया था, वह दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया गया या नहीं।
3. दंड: इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को तीन वर्ष की न्यूनतम अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा।
चूंकि अधिनियम में 'दुष्प्रेरण' (Abetment) को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है, इसलिए भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों की सुनवाई विशेष न्यायाधीश (Special Judge) द्वारा की जाती है। 

धारा 12 का विवरण सरल हिंदी में 

भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 12 उन लोगों को दंडित करती है जो अधिकारी और व्यक्ति के बीच मीडिएटर का काम करते हैं। इस तरह के लोगों को सामान्य भाषा में अधिकारी का एजेंट या दलाल भी कहा जाता है। राजनीति में ऐसे लोगों को अधिकारी का खास आदमी कहा जाता है। विवाद की स्थिति इसलिए है क्योंकि मीडिएटर ना तो सरकारी अधिकारी होता है और ना ही दूसरा पक्ष। मीडिएटर ना तो रिश्वत ले रहा है और ना ही दे रहा है, ऐसी स्थिति में वह अपराधी नहीं हो सकता। 

दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हुआ प्रश्न

दिल्ली हाई कोर्ट में तारा दत्त का मामला प्रस्तुत हुआ, जो दिल्ली पुलिस में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर थी। तीस हजारी कोर्ट में एक वैकेंसी ओपन हुई थी। अपने किसी परिचित को नौकरी दिलवाने के लिए तारा दत्त ने तीस हजारी कोर्ट के एक न्यायाधीश को ₹50000 रिश्वत की पेशकश की थी। बदले में न्यायाधीश को अपने पद का दुरुपयोग करते हुए तारा दत्त द्वारा बताए गए व्यक्ति को नौकरी के लिए सबसे योग्य घोषित करना था। न्यायाधीश ने इस बात की शिकायत कर दी और 2021 में तारा दत्त को भ्रष्टाचार के अपराध का दोषी घोषित किया गया। न्यायालय की इस निर्णय के खिलाफ तारा दत्त ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की थी। 

PC Act Sec. 12: सभी हाईकोर्ट्स के फैसलों पर विचार किया गया

इस विवाद में केरल, मुंबई और इलाहाबाद तथा मध्य प्रदेश और मद्रास हाईकोर्ट्स के फैसलों को प्रस्तुत किया गया। इस प्रकार यह 3/2 का मामला था। तीन हाई कोर्ट इस प्रकार की बातचीत को अपराध नहीं मानते, जबकि दो हाई कोर्ट इस प्रकार की बातचीत को अपराध घोषित कर चुके थे। दिल्ली हाई कोर्ट ने मध्य प्रदेश और मद्रास हाई कोर्ट के फैसलों को सही माना। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, इस बात पर ज्यादा विचार करने की जरूरत नहीं है की रिश्वत किस प्रकार से, किस माध्यम से अथवा किसी तरीके से पेशकश की गई बल्कि यह ध्यान देना जरूरी है कि क्या Abetment अर्थात दुष्प्रेषण हुआ है। यदि हुआ है तो दुष्प्रेरित करने वाला व्यक्ति दंड का पात्र है। 

PC Act Sec. 12 की नई परिभाषा

इस प्रकार यह मामला 3/3 का नहीं बल्कि एक प्रकार से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 की नई परिभाषा को स्थापित करता है। यह जजमेंट स्पष्ट करता है कि, Abetment अर्थात दुष्प्रेषण किसी भी प्रकार से किया जाए, किसी भी परिस्थिति में किया जाए, और स्पष्ट अथवा किसी भी प्रकार के इशारे में किया जाए, तरीके के बदले जाने से अपराध की गंभीरता नहीं बदल जाएगी।  लेखक: उपदेश अवस्थी (पत्रकार एवं विधि सलाहकार)।
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