विदेशों में श्रीरामकथा कैसी होती है और हनुमान जी का वर्णन कैसे किया जाता है

श्रीरामकथा के साथ-साथ हनुमानजी की कथा भी भारत की सीमाओं को पार कर महासागरों के उस पार सुदूर देशों में व्याप्त हो रही है, जो आज भी वहाँ देखने को मिलती है। यह देखने में आया है कि भारत के बाहर विदेशों में श्रीरामकथा की दो धाराएँ प्रवाहित होती दिखाई देती हैं। प्रथम वह जिसमें श्रीराम का स्वरूप भगवान के रूप में निरूपित किया गया है। दूसरी धारा वह है जिसमें उन्हें एक महापुरुष के रूप में बताया गया है। भगवान के रूप को मानने की विचारधारा वस्तुतः भारत की है, जो भारतीयों के माध्यम से वहाँ तक पहुँची। दूसरी धारा श्रीरामकथा की अद्वितीय मानवीयता की सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय कथा है।  

दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में श्री राम कथा कैसी होती है

दूसरी धारा, जो दक्षिण पूर्व एशिया के देशों की है, ने सैकड़ों नहीं, सहस्रों वर्ष पूर्व श्रीरामकथा की श्रेष्ठता से प्रभावित होकर अपने साहित्य में स्थान देकर इसे स्वीकार कर लिया तथा स्थानीय संस्कृति के रंग में रंगकर इसे सामाजिक जीवन में उतार लिया। हर देश में श्रीरामकथा ने अपनी संस्कृति में रंग लिया है। बर्मा, थाईलैंड, कम्बोडिया, लाओस, मलेशिया और इंडोनेशिया में अपनी-अपनी श्रीरामकथा एवं अलग-अलग प्रसंगों सहित देखने को मिलती हैं।  

श्रीरामचरितमानस - आइसलैंड में बंधुआ मजदूरों की शक्ति 

प्रथम विचारधारा अपेक्षाकृत नवीन है, जिसकी अवधि लगभग 150 से 200 वर्षों से अधिक पुरानी नहीं है। यह विचारधारा भारत के परतंत्रता के उस दुर्भाग्य का प्रतीक है, जब मारीशस, फिजी, गयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम आदि सुदूर द्वीपों के गोरे उद्योगपति उत्तर प्रदेश, बिहार आदि भारतीय प्रदेशों के सीधे-सादे, भोले-भाले और गरीब निवासियों को रोजी-रोटी का लालच देकर वहाँ ले जाते थे और वहाँ ले जाकर उनसे पशुओं की तरह काम लेते थे, उनका आर्थिक शोषण करने के साथ-साथ निर्दयता और अमानवीय व्यवहार भी करते थे। ये गोरे लोग अपने एजेंटों के माध्यम से इन निर्धन और अशिक्षित भारतीयों को उनके प्रांतों से सुदूर द्वीपों पर ले जाते थे। इन विदेशों में जाने वालों के पास कोई कीमती वस्तु नहीं होती थी, सिवाय श्रीरामचरितमानस (रामायण) और हनुमान चालीसा की एक-एक पुस्तक के। ये उनके निजी जीवन एवं सामूहिक जीवन में भक्ति और सामूहिक मनोरंजन के साधन थे। विदेशों में समुद्री यात्रा में बाधाएँ या तूफान आने पर ये इन पवित्र ग्रंथों का पारायण करते थे। 
 

श्रीरामचरितमानस के कारण दर्जनों देशों में लोगों को आजादी मिली

कुछ वर्षों के उपरांत ये भारतीय लोग कुली और मजदूर बनकर कार्य करने लगे। जब कभी गोरे लोग उन पर अत्याचार करते, तो वे भगवान श्रीराम एवं श्रीहनुमानजी की शरण में चले जाते और दुख एवं वेदना भूल जाते थे।  उनकी व्यथा और वेदना को इनकी पीढ़ियों ने लगभग एक से दो शताब्दियों तक भोगा, किंतु साहस और धैर्य नहीं खोया। इसका पूरा-पूरा श्रेय रामायण (श्रीरामचरितमानस) एवं हनुमान चालीसा को ही है। आज ये सभी देश स्वतंत्र देशों के रूप में हैं, और इनके साथ-साथ हमारे ये भोले-भाले भाई भी स्वतंत्र हैं। वर्तमान में कुछ देशों में इन भारतीयों ने प्रधानमंत्री, मंत्री तथा शासकीय बड़े-बड़े पद प्राप्त कर लिए हैं, किंतु इन्होंने अपनी रामायण एवं हनुमान चालीसा को कभी विस्मरण नहीं किया। देखने में आया है कि वर्तमान में भी मारीशस के ग्रामीण एवं शहरी घरों पर लाल रंग की झंडियाँ फहराती हुई दिखाई देती हैं, जो हनुमानजी के भक्त होने का संकेत हैं। इन स्थानों पर श्रीराम एवं हनुमानजी के मंदिरों की स्थापना भी कर दी गई है।  

इंडोनेशिया - विशाल शिव मंदिर के प्रदक्षिणा पथ में सम्पूर्ण रामायण

इंडोनेशिया में दसवीं शताब्दी में वहाँ के महाराज बलितुंग ने प्राम्बानन में विशाल शिवालय का निर्माण करवाया। इसका शिखर 140 फुट ऊँचा और लगभग 244 मंदिरों से घिरा है। इस शिवालय की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके प्रदक्षिणा पथ में सम्पूर्ण रामायण उत्कीर्ण है। यह विश्व की प्राचीनतम कला का श्रेष्ठ उदाहरण है। श्रीराम भक्त हनुमानजी का इसमें अनेक बार चित्रण देखने को मिलता है। इंडोनेशिया में आज भी रामायण का अभिनय अत्यंत ख्यातिप्राप्त और लोकप्रिय है। 

कंबोडिया में राम तो  थाईलैंड में हनुमान

कम्बोडिया में भी रामायण लोकप्रिय और व्यापक रूप से प्रसारित है। यहाँ रामकीर्ति के नाम से श्रीरामकथा सौ खंडों में प्रकाशित हुई है। श्रीरामजी एवं हनुमानजी आज घर-घर में सुशोभित हैं। थाईलैंड में तेरहवीं शताब्दी में महाराजा ने थाई भाषा में काव्य लिखकर रामायण को थाई साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिया। इसके अतिरिक्त, कई थाईलैंड के राजाओं ने भी श्रीरामकथा के थाई रूपांतर लिखे हैं। वर्तमान में हनुमानजी से संबंधित प्रसंगों का थाईलैंड में अभिनय देखने को मिलता है।  

आज भी वर्णित इन देशों में श्रीराम के संदेशवाहक और श्रेष्ठ दूत के रूप में हनुमानजी को स्थापित किया गया है। श्रीरामलीला और नृत्य-नाटकों में श्रीराम एवं हनुमानजी का चित्रण देखने को मिलता है। प्रवासी भारतीयों ने अपने-अपने मंदिरों में श्रीहनुमानजी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की है। अतः यही कहना पर्याप्त है कि जहाँ श्रीराम हैं, वहाँ हनुमानजी भी विराजमान हैं। इंडोनेशिया की प्राचीनतम राम-संबंधी साहित्यिक रचना, ''रामायण ककविन'' है, जो दसवीं शताब्दी की मानी जाती है। स्यामदेश में श्रीरामकथा, ''रामकियेन'' (अर्थात् रामकीर्ति) के नाम से प्रसिद्ध है। बर्मा का रामकथा-साहित्य बहुत प्राचीन है। श्याम की रामकथा के आधार पर 'यू तो' ने १८०० ई. के लगभग 'राम यागन' की रचना की थी, जो बर्मा का सबसे महत्वपूर्ण काव्य माना जाता है। अंत में, यह बात स्पष्ट है कि श्रीरामकथा एवं हनुमानजी की कथा न केवल भारत में, अपितु विदेशों में भी श्रद्धा-भक्ति के साथ पढ़ी और पूजी जाती है।  
लेखक: डॉ. नरेन्द्रकुमार मेहता
'मानसश्री', मानस शिरोमणि, विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर
सीनियर एमआईजी-१०३, व्यास नगर,
ऋषिनगर विस्तार, उज्जैन (म.प्र.)  

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