जब सरकार सख्त होती है तो सिस्टम अपने आप काम करने लगता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के GYAN (चार प्राथमिकताएं) पर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने ध्यान लगा रखा है। जरा सी गड़बड़ हो तो सीएमओ एक्टिव हो जाता है। इसका असर जबलपुर भी में दिखाई दिया, जब सेना के एक जवान की मासूम कन्या के लिए शनिवार को ऑफिस बंद और साप्ताहिक छुट्टी हो जाने के बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी वापस अपने ऑफिस में आए और प्रशासनिक औपचारिकता पूरी करके कन्या को बेहतर इलाज के लिए मुंबई रवाना किया गया।
मध्य प्रदेश के अधारताल में रहने वाले राहुल कुशवाहा की एक माह की बेटी आराध्या की कहानी दिल को छू लेने वाली है। यह कहानी न केवल एक परिवार की हिम्मत को दर्शाती है, बल्कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के संवेदनशील नेतृत्व और उनके निर्देशों से बदली प्रशासनिक व्यवस्था को भी रेखांकित करती है। उनके कुशल मार्गदर्शन ने नौकरशाही को इतना चुस्त-दुरुस्त कर दिया कि लापरवाह अधिकारी भी ओवरटाइम करने को मजबूर हो गए।
एक मासूम की जिंदगी का संकट
शनिवार की दोपहर, अधारताल निवासी राहुल कुशवाहा की एक महीने की बेटी आराध्या की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उसका छोटा सा शरीर नीला पड़ने लगा। परिजन उसे तुरंत नजदीकी अस्पताल ले गए, जहां इको जांच में पता चला कि मासूम के दिल में जन्मजात छेद है। डॉक्टरों ने तत्काल सलाह दी कि बच्ची को मुंबई रेफर करना होगा, क्योंकि जबलपुर में इस गंभीर स्थिति का इलाज संभव नहीं था।
राहुल, जो भारतीय सेना में पदस्थ हैं और वर्तमान में श्रीनगर बॉर्डर पर तैनात हैं, अपनी बेटी की हालत से अनजान थे। 26 अप्रैल 2025 को आराध्या का जन्म हुआ था, लेकिन भारत-पाक सीमा पर बढ़ते तनाव के कारण राहुल को जन्म के दो दिन बाद ही ड्यूटी पर लौटना पड़ा। उन्होंने अपनी बेटी को देखा तक नहीं था।
जबलपुर प्रशासन का त्वरित एक्शन
बच्ची की बिगड़ती हालत को देखते हुए उसकी मां और दादा रामायण कुशवाहा डीईआईसी कार्यालय पहुंचे। उस समय शाम हो चुकी थी और कार्यालय बंद था। लेकिन परिवार ने हार नहीं मानी और जिला प्रबंधक सुभाष शुक्ला से फोन पर संपर्क किया। सुभाष उस समय घर लौट रहे थे, लेकिन जैसे ही उन्हें मासूम की हालत का पता चला, वे तुरंत कार्यालय लौट आए। सीएमएचओ डॉ. संजय मिश्रा को भी सूचना दी गई, और वे भी रात में कार्यालय पहुंचे।
कुछ ही देर में पूरा स्टाफ कार्यालय बुलाया गया। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) के तहत आराध्या के इलाज के लिए जरूरी दस्तावेज तैयार किए गए। रात में ही मुंबई के नारायणा अस्पताल के डॉक्टरों से संपर्क किया गया और रेलवे टिकट की व्यवस्था कर बच्ची को परिवार समेत मुंबई रवाना किया गया।
मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना का सहारा
जिला प्रबंधक सुभाष शुक्ला ने बताया कि आराध्या की हालत बेहद नाजुक थी। समय की संवेदनशीलता को समझते हुए पूरी टीम ने मात्र तीन घंटे में सारी औपचारिकताएं पूरी कीं। मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के तहत आराध्या का पूरा इलाज नि:शुल्क किया जाएगा। मुंबई के डॉक्टरों से बातचीत कर सभी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गईं।
मुख्यमंत्री के निर्देशों का असर
इस पूरी घटना में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की संवेदनशील व्यवस्था का योगदान अहम रहा। सामान्य तौर पर वीकेंड यानी शनिवार की दोपहरी अधिकारी अपनी कुर्सी छोड़ देते थे। उसके बाद मोबाइल का स्विच ऑफ कर लेते थे। जब तक कोई प्रेशर ना आ जाए तब तक कोई काम नहीं करते थे। पब्लिक की बात तो कार्य दिवस में भी नहीं सुनते थे लेकिन जब से मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने "GYAN" से जुड़े मामलों की निगरानी करवाई है, जिले के निचले स्तर तक संवेदनशीलता दिखाई देने लगी है। उनके निर्देशों के कारण ही प्रशासनिक अमला इतना तत्पर हुआ कि रात में भी कार्यालय खोलकर एक मासूम की जिंदगी बचाने के लिए तुरंत कदम उठाए गए। यह कहानी न केवल आराध्या की जिंदगी की जंग को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक संवेदनशील नेतृत्व और चुस्त प्रशासन मिलकर चमत्कार कर सकता है।
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