तपती वैशाख, शुक्ल नवमी, मघा नक्षत्र और ध्रुव योग में आतंक के नौ नापाक केंद्र—लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन के ठिकानों पर आतंकी मसूद अजहर के कुनबे के मारे जाने से देशभक्तों के कलेजे को वैशाख में ठंडक मिली। रावलपिंडी में आतंक का पिंडदान करते, कंधार से पहलगाम तक के ज़ख्म का बदला लेते, भारतीय सेना का शौर्य देखा। मोदी सरकार का शक्ति-प्रहार, शाह की हुंकार, राजनाथ की ललकार, जयशंकर का आक्रोश, डोवाल की रणनीति की तरंगें हिंद महासागर में ज्वार-भाटा बनकर उठते देखीं।
मिसाइल और ड्रोन जैसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र हवा में टकरा रहे थे
युद्धभूमि पर सिंदूर का बदला लेने गरज कर वीर सैनिक शत्रु की सेना पर टूट पड़े और अपने भुजबल से आतंकियों और शत्रु सेना का मर्दन करने लगे। मिसाइल और ड्रोन जैसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र हवा में टकरा रहे थे, रणभूमि पर सैनिकों का रक्त बह रहा था, आतंकियों के शव नापाक ज़मीन पर बिखरे देखे।
महर्षि व्यास द्वारा प्रदत्त दिव्य दृष्टि से सृष्टि के प्रथम पत्रकार संजय ने कुरुक्षेत्र युद्ध भूमि से युद्ध का सीधा और वास्तविक प्रसारण महाराज धृतराष्ट्र के सामने किया था। भारत-पाकिस्तान युद्ध का सीधा प्रसारण तो हुआ, लेकिन वास्तविक नहीं "खबरों में सबसे तेज़" का दंभ भरने वाले चैनल को इस्लामाबाद पर क़ब्ज़ा कराते, "आंखों-देखी, ख़बर आप तक” पहुंचाने का पाखंड करने वाले चैनल को आपरेशन सिंदूर में 500 आतंकियों को ढेर करते, “सोच-समझकर देश का साथ देने” वाले जी का जंजाल चैनल को 70 पाक ठिकाने तबाह करते "अनुभव, सत्य”, “सबसे पहले ख़बर देने” का दिखावा करने वाले चैनल को 70 पाकिस्तानी ठिकाने तबाह करते देखा।
“देश का भाग्य बदलता है, ख़बरें देखकर " स्वांग करने वाले चैनल को पाकिस्तान का भूगोल बदलते — अर्थात 10 पाकिस्तानी शहरों पर क़ब्ज़ा कराते, “राष्ट्र के नाम” कर्कश आवाज़ में चिल्लाने वाले शेखचिल्ली चैनल को “पाक पीएम के इस्तीफे का समाचार प्रसारित करते देखा। इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने टीआरपी की दौड़ में 18" के पाइप से पाकिस्तान को बर्बाद कर अपनी जग हंसाई कराई, दूसरी तरफ प्रिंट मीडिया ने रामधारी सिंह दिनकर की रचना जला अस्थियां बारी-बारी,
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम,आज उनकी जय बोल का
दिव्य घोष कर संयम की पत्रकारिता कर पत्रकारिता धर्म निभाया। 6" की कलम के शब्द ने 18" के पाइप के कर्कश आवाज़ को आइना दिखाते देखा।
हे राजन ! शास्त्रों में वर्णन है शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाले स्वर्ग में स्थान पाते हैं, लेकिन नीच का पिंडदान करने और दंड देने का प्रावधान है, क्षमा करने का नहीं। नरपिशाचों को 72 हूरों से मिलाने पर भी स्वर्ग मिलता है।
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय, श्लोक 33 (2.33):
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि॥
हिंदी अनुवाद (Translation): यदि तुम इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करोगे, तो तुम अपने स्वधर्म और कीर्ति (यश) को खो दोगे और पाप के भागी बनोगे।
विश्लेषण (Analysis): श्रीकृष्ण यहाँ अर्जुन को चेतावनी देते हैं कि धर्मयुद्ध से पीछे हटना पाप है। भीष्म और कर्ण जैसे योद्धा, जो अधर्म के पक्ष में खड़े थे, उनके खिलाफ युद्ध करना अर्जुन का कर्तव्य था। इस संदर्भ में, उनका वध धर्म के अनुरूप था, क्योंकि यह धर्म की स्थापना के लिए आवश्यक था।