FIR क्या है एवं NCR से अलग क्यों होती है, जानिए FIR और NCR में अंतर- legal advice

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 को तो सभी आम नागरिक जानते कि इसमे संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट लिखी जाती है और इस रिपोर्ट को ही पुलिस FIR कहते है अर्थात्‌ संज्ञेय अपराध की जो रिपोर्ट पुलिस थाना प्रभारी द्वारा लिखी जाएगी उसे एफआईआर कहा जाता है, जानिए कानूनी भाषा एवं नए कानून में परिभाषा :-

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 173 एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 की परिभाषा

1. संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस थाने के थाना प्रभारी को मौखिक रूप से या इलैक्ट्रानिक सूचना (ऑनलाइन शिकायत, एफआईआर) द्वारा की जा सकती है।
A). अगर सूचना मौखिक है तो तुरंत पुलिस अधिकारी द्वारा लेखबद्ध की जाएगी एवं सूचना देने वाले व्यक्ति को पढकर सुनाई जाएगी एवं उस पर उसके हस्ताक्षर किए जाएंगे।
B). अगर कोई शिकायत इलैक्ट्रानिक (ऑनलाइन E- एफआईआर या शिकायत) की गई है तब सूचना देने वाले व्यक्ति को तीन दिन के भीतर बुलाकर हस्ताक्षर किए जाने के बाद लेखबद्ध की जाएगी।

परन्तु किसी महिला से संबंधित कोई गम्भीर अपराध है जैसे बलात्कार, तेजाब से पीड़ित, छेड़छाड़ आदि तब ऐसे अपराध की एफआईआर महिला पुलिस अधिकारी द्वारा लिखी जाएगी।

पीड़ित महिला अगर निःशक्त है या कोई महिला बलात्कार से मानसिक या शारीरिक कमजोर हो गई है और वह थाने एफआईआर दर्ज करवाने आने में असमर्थ है तब पुलिस अधिकारी या तो महिला के निवास पर जाकर रिपोर्ट लिख सकते है या जहां महिला को उचित लगे वहां जाकर, लेकिन ऐसी सूचना की वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी और ऐसे अपराध की जानकारी तुरंत संबधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को देगा। 

2. एफआईआर दर्ज होने के बाद एफआईआर की एक प्रतिलिपि सूचना देने वाले व्यक्ति को तुरंत निःशुल्क दी जाएगी।

3. अगर कोई संज्ञेय अपराध सात वर्ष के कारावास या उसे कम तीन वर्ष तक का है तब थाना प्रभारी एफआईआर दर्ज करने से पहले चौदह दिन की जाँच कर सकता है एवं इसकी अनुमति वह डीएसपी रैंक के पुलिस अधिकारी से लेगा। 

4). अगर कोई पुलिस थाना अधिकारी किसी संज्ञेय अपराध की एफआईआर दर्ज नहीं करता है तब पीड़ित व्यक्ति आपनी शिकायत जिले के पुलिस अधीक्षक को डाक द्वारा या स्वय उपस्थित होकर कर सकता है। 
पुलिस अधीक्षक अगर पीड़ित व्यक्ति की शिकायत से संतुष्ट हो जाता है तो या तो स्वयं उस अपराध की जाँच करेगा या किसी अन्य पुलिस अधिकारी को उस अपराध की जाँच के लिए नियुक्त करेगा।

पुलिस अधीक्षक (एसपी) जिस पुलिस अधिकारी को अपराध की जाँच करने के लिए नियुक्त करेगा उसे वह सब अधिकार, शक्ति प्राप्त होगी जो संबधित थाने के थाना प्रभारी को थी। जिसने संज्ञेय अपराध की एफआईआर दर्ज नहीं की थी। 

नोट:- नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ऑनलाइन एफआईआर को जोड़ा गया है एवं संज्ञेय अपराध जिसकी सजा सात वर्ष से अधिक न हो उसमे पुलिस थाना अधिकारी जाँच करके एफआईआर दर्ज कर सकता है।

आम लोगों के लिए सामान्य शब्दों मे जानकारी:- FIR एवं NCR

▪︎ पुलिस द्वारा संज्ञेय (गंभीर) अपराध में एफआईआर दर्ज की जाती है एवं आपको जानना जरूरी होगा की जब पुलिस अधिकारी द्वारा आपकी रिपोर्ट दर्ज हो गई है तो उसने FIR (दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154(1)) लिखा है या नहीं। नए कानून में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(1) होगा जिससे आप आम भाषा में सरकारी रिपोर्ट भी कह सकते हैं।

▪︎ पुलिस द्वारा असंज्ञेय (कम गम्भीर) अपराध की रिपोर्ट लिखी जाती है उसे NCR कहते हैं, जिसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 लिखा होता है एवं नए कानून में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, की धारा 174 लिखा होगा।

▪︎ NCR असंज्ञेय अपराध की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पीड़ित व्यक्ति को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होना होगा। यहां बहुत से लोगों NCR दर्ज होने के बाद पुलिस अधिकारी की कार्यवाही का इंतजार करते है जबकि NCR में पुलिस थाना अधिकारी बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के कोई कार्यवाही नहीं करता है। लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।

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