यदि विवाह के बाद पति अथवा पत्नी में से कोई भी लापता हो जाए और निरंतर 7 वर्षों तक उसके बारे में कोई सूचना प्राप्त न हो, तब पति अथवा पत्नी, बिना विधिवत तलाक के दूसरा विवाह कर सकते हैं। बीएनएस की धारा 81 अथवा आईपीसी की धारा 494 के तहत इस प्रकार का पुनः विवाह अपराध की श्रेणी में नहीं होगा, लेकिन यदि लापता पति अथवा पत्नी की मृत्यु की पुख्ता सूचना प्राप्त हो जाए तो 7 साल की अवधि से पहले भी दूसरा विवाह किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में यदि सूचना गलत निकले और लापता जीवनसाथी के जीवित होने का समाचार मिले अथवा स्वयं जीवित उपस्थित हो जाए तब क्या होगा। इस संबंध में महत्त्वपूर्ण जजमेंट :-
आर. बनाम टाल्सन मामला
इस मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यदि कोई पत्नी यह विश्वास करने के लिए उचित कारण होते हुए कि उसका पति मर चुका है, सात वर्ष के पहले ही किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर लेती है, परंतु विवाह के बाद उसका प्रथम पति आ जाता है या उसके जीवित रहने की सूचना मिलती, तो भी वह द्विविवाह के अपराध की दोषी नहीं मानी जाएगी एवं यही बात पुरुष द्वि-विवाह की दशा में भी लागू होती है।
लेकिन अगर स्त्री या पुरुष को यह पता है कि उसका पति या पत्नी जिवित है तब वह द्वि विवाह नहीं कर सकते है अथवा द्वि विवाह के दोषी होगे ।
न्यायालय ने आगे कहा की जहां द्वितीय विवाह के पहले ही आरोपी और उसकी पत्नी सात वर्ष से अलग रह रहे हैं। तो आरोपी को ही साबित करना होगा की विगत सात वर्षों से वह एक दूसरे से ना मिले थे न उनके पास पहुंचने का कोई साधन उपलब्ध था।
जनरल नॉलेज:- ज्ञातव्य होना चाहिए की हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1960 की धारा 494 लागू होने से पहले हिन्दुओ में बहू विवाह प्रथा परिचालित थी अर्थात हिन्दू पुरुष एक से अधिक विवाह कर सकते थे। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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