भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 107 के उपखण्ड 03 में सहायता द्वारा दुष्प्रेरण के अपराध को बताया गया है इस अपराध के तीन प्रमुख उद्देश्य है जानिए।
1. कार्य द्वारा सहायता।
2. अवैध लोप द्वारा सहायता।
3. सुविधा प्रदान कर सहायता द्वारा दुष्प्रेरण।
उपरोक्त अपराध के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय
1. उमी बनाम सम्राट मामले मे एक पादरी ने द्विविवाह कराने में पुरोहित का कार्य किया जबकि उसे यह ज्ञात था कि द्वि विवाह एक दण्डनीय अपराध है। न्यायालय ने उसे आशयपूर्वक सहायता के दुष्प्रेरण के लिए पादरी को दोषी माना।
2. सम्राज्ञी बनाम कालीचरण मामले मे एक पुलिस हेड कांस्टेबल यह जानता था कि गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों से जबरदस्ती स्वीकृति हासिल करने के लिए उसके अधीनस्थ साथी उन्हें यातना पहुचाने वाले है और वह हेड कांस्टेबल वहां से चुप चाप खिसक जाता है उसे धारा 107 के अंतर्गत अवैध लोप द्वारा दुष्प्रेरण में सहायक होने का दोषी ठहराया गया।
3. सम्राट बनाम फैयाज हुसैन मामले मे एक ज़मींदार ने अपना मकान पुलिस अधिकारी को यह जानते हुए किराये से उपलब्ध कराया कि वह एक मामले का अन्वेषण कर रहा है और उसका मकान संदिग्ध चोर को यातनाएं पहुचाने के लिए उपयोग में लाया जाएगा। न्यायालय ने जमीनदार को सुविधा द्वारा सहायता पहुचा कर दुष्प्रेरण के लिए दोषी ठहराया। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद), इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com