जब कोई मामला किसी सिविल कोर्ट में जाता है तब मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद न्यायालय निर्णय देता है न्यायालय का निर्णय सर्वमान्य होगा अर्थात दोनों में से किसी भी पक्षकार वादी या प्रतिवादी के पक्ष में होगा। ऐसे में जिस भी पक्षकार का समय बर्बाद हुआ है या अनवंशिक खर्च हुआ है या न्यायालय का पक्षकार द्वारा समय बर्बाद किया गया है, तब न्यायालय वादी या प्रतिवादी को खर्च देने के आदेश दे सकता है जानिए।
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 की धारा 35 की परिभाषा
न्यायालय सभी मामलों में एवं आनुषंगिक (आवश्यक रूप से होने वाले) खर्चो को उस पक्षकार को दिला सकेगा जो मामले में उसके द्वारा खर्च की गई है। न्यायालय ऐसे खर्च किस पक्षकार के द्वारा एवं किस संपत्ति में से और कितना दिलवाएगा यह निर्धारण करना न्यायालय का विवेकाधिकार है।
• इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण जजमेंट जानिए:-
1. पेद्दना बनाम श्री निवास सैय्या:- उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि अधीन न्यायलय द्वारा पक्षकार को वाद व्यय प्रदान करने का आदेश करना यह कोई दण्ड स्वरुप नहीं है, यह एक क्षतिपूर्ति है।
2. नटवर टेक्सटाइल प्रोसेसर्स प्र.लि.बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया कि न्यायिक का दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति को भयभीत करने हेतु तथा भविष्य में कोई अन्य व्यक्ति ऐसा दुरुपयोग न कर सके न्यायालय न्यायहित में कोई भी न्यायोचित आदेश पारित कर सकता है तथा कठोर शर्ते एवं निबंधन लगा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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