CPC 33- डिसीजन एवं डिक्री में क्या अंतर होता है, सुनवाई समाप्ति के कितने दिन में फैसला अनिवार्य है

What is the difference between decision and decree

जब कोई वाद (मामला) न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है तो उसकी सुनवाई की तारीख का निर्धारण न्यायालय द्वारा किया जाता है एवं जब सुनवाई की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तब न्यायालय द्वारा निर्णय सुनाया जाता है। इसी के आधार पर पक्षकार को डिक्री प्राप्त होती है। अर्थात वादपत्र मामले की आधारशिला है तो निर्णय एवं डिक्री उसका निचोङ होता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 33 की परिभाषा

सीपीसी की धारा 33 में निर्णय एवं डिक्री की परिभाषा इस प्रकार हैं जब कोई सिविल कोर्ट मामले की सुनवाई पूरी कर लेता है उसके पश्चात न्यायालय अपना निर्णय सुनाएगा एवं ऐसे निर्णय का अनुसरण करना डिक्री (आज्ञप्ति) होगी।

सुनवाई खत्म होने के कितने समय मे निर्णय सुनाया जाना चाहिए

सिविल प्रकिया संहिता,1908 के आदेश क्रमांक 20 के नियम 01 का उपनियम 01 के अनुसार यदि कोई सुनवाई न्यायालय द्वारा समाप्त हो जाने के तुरन्त पश्चात निर्णय सुनाया जाना संभव नहीं है तो न्यायालय द्वारा सुनवाई समाप्त होने के तीस दिनों के भीतर सुनाए जाने का प्रयास किया जाएगा। यदि कोई अति विशेष परिस्थिति हो तब कारण को लेखबद्ध करते हुए 60 दिन में निर्णय सुना दिया जाएगा तथा निर्णय सुनाने की दिनांक की सूचना पक्षकारों को दी जाएगी।

इसी संबंध में हाईकोर्ट का एक महत्वपूर्ण जजमेंट पढ़िए:-

इंदुभूषण जेना बनाम यूनियन ऑफ इंडिया:- मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि निर्णय उद्घोषित किए जाने में अनावश्यक विलम्ब नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि विलम्ब से सुनाया गया निर्णय संदेहास्पद हो जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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