Madhya Pradesh Chunav politics news
मध्यप्रदेश में कर्नाटक विधानसभा चुनाव की रणनीति की गहराई से समीक्षा की जा रही है। कांग्रेस ने क्या रणनीति अपनाई जो उसे इस माहौल में भी सफलता मिल गई। भाजपा ने कौन सी गलती की जो नरेंद्र मोदी का प्रयास भी विफल हो गया और दूसरे दलों से भाजपा में आने वाली नेताओं को महत्व दिए जाने का फायदा हुआ या नुकसान।
मध्य प्रदेश और कर्नाटक में काफी समानताएं हैं
- वहां भी कांग्रेस के विधायक भाजपा में शामिल हुए और भाजपा की सरकार बनी।
- यहां भी कांग्रेस के विधायक भाजपा में शामिल हुए और भाजपा की सरकार बनी।
- वहां भी उपचुनाव में कांग्रेस के कुछ विधायक चुनाव हार गए थे।
- यहां भी उपचुनाव में कांग्रेस के कुछ विधायक चुनाव हार गए थे।
- वहां भी भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और कांग्रेस पार्टी से आए विधायकों के समर्थकों के बीच खुला संघर्ष हुआ।
- यहां भी भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों के बीच खुला संघर्ष चल रहा है।
मध्यप्रदेश में सिंधिया समर्थक और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच तनाव क्यों है
श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए कार्यकर्ताओं के नेता आज भी श्रीमंत महाराज साहब ही हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी में संगठन महत्वपूर्ण होता है। नेता महत्वपूर्ण नहीं होता। सिंधिया समर्थक खुलेआम बयान बाजी करते हैं। कहते हैं कि उनके लिए उनका नेता सबसे महत्वपूर्ण है। सिंधिया समर्थकों के बयान भाजपा के आधार पाठ्यक्रम के खिलाफ हैं। यही कारण है कि सिंधिया समर्थक और भारतीय जनता पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच वैचारिक मतभेद शुरू हो जाते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की टीम कर्नाटक का क्या असर पड़ेगा
कर्नाटक चुनाव के नतीजों के बाद मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता और अधिक मुखर हो जाएंगे। अब उनके पास कुछ आंकड़े भी हैं जो यह बता रहे हैं कि अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए दल बदलने वाले नेताओं को महत्व देने का भाजपा को कितना नुकसान उठाना पड़ता है। मध्यप्रदेश में यह मुद्दा एक आग की तरह काम कर रहा है। जमीन के नीचे अंगारे सुलग रहे हैं। स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती है।
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