द्रोणाचार्य को अंगूठा दान करने के बाद एकलव्य का क्या हुआ, यहां पढ़िए- Bhopal Samachar GK

Amazing facts in Hindi about eklavya

गुरु द्रोण को अंगूठा दान करने तक की कहानी तो सभी जानते हैं परंतु इसके बाद एकलव्य का क्या हुआ। क्या अंगूठा कट जाने के बाद एकलव्य अपने जीवन में कभी धनुष उठा पाया। क्या अंगूठा कट जाने के बाद उसकी धनुर्विद्या में कोई परिवर्तन हुआ। वह कब तक जीवित रहा और उसकी मृत्यु कैसे हुई। आइए पढ़ते हैं:- 

गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में अंगूठा ही क्यों मांगा

यह कहानी तो सभी को पता है कि एकलव्य ने, जंगल में गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर उसके समक्ष धनुर्विद्या का अभ्यास किया और अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया। यानी उस समय वर्ल्ड का सबसे बेस्ट तीरंदाज एकलव्य बन गया था। फिर उसकी मुलाकात गुरु द्रोणाचार्य से हुई और उन्होंने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसके दाएं हाथ का अंगूठा मांग लिया। अंगूठे के बिना, धनुष को उठाया तो जा सकता था परंतु बाण को प्रत्यंचा पर चढ़ाना असंभव था। 

अंगूठा दान करने के बाद भी एकलव्य नंबर वन धनुर्धर था

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसके बावजूद एकलव्य लगातार वर्ल्ड का सबसे बेस्ट तीरंदाज बना रहा। अंगूठा दान करने के बाद एकलव्य ने धनुष चलाने की एक नवीन विधि का आविष्कार किया। इसमें धनुष चलाने के लिए अंगूठे की आवश्यकता नहीं होती बल्कि तर्जनी और मध्यमा उंगली की मदद से तीरंदाजी की जा सकती है। आज भी दुनिया भर में तीरंदाजी के लिए जिस तकनीक का उपयोग किया जाता है, वह एकलव्य की तकनीक है। द्रोणाचार्य की तकनीक का उपयोग अब पूरी दुनिया में कहीं नहीं किया जाता। 

एकलव्य ने कितने युद्ध लड़े, मृत्यु कैसे हुई

एकलव्य के पिता हिरण्यधनु, श्रृंगवेरपुर नामक राज्य के राजा थे। यह राज्य जरासंध को अपना सम्राट मानता था और जरासंध के गठबंधन का हिस्सा था। पिता की मृत्यु के बाद एकलव्य राजा बने। उन्होंने भी जरासंध के साथ अपनी संधि को नियमित रखा। जरासंध ने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया। हर हमले में एकलव्य, जरासंध के साथ था, और हर बार मथुरा की सेना को भारी नुकसान पहुंचाता था। 18वीं बार जब जरासंध और एकलव्य ने मथुरा पर हमला किया तब उनके सामने स्वयं श्रीकृष्ण थे। 

भगवान कृष्ण ने उंगलियों की मदद से धनुष चलाते हुए एकलव्य को देखा, उसकी प्रशंसा भी की परंतु जरासंध का साथी होने के कारण स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को एकलव्य का वध करना पड़ा। महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने से पहले एकलव्य का वध हो चुका था। एकलव्य के पुत्र केतुमान भी परंपरा अनुसार जरासंध की संधि में रहा और कौरवों की ओर से महाभारत के युद्ध में शामिल हुआ। इस प्रकार निषादों के राज्य का अंत हुआ। 

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