दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320(1) में उन अपराधों के समझोता के बारे में बताया गया है जिनका समझौता दोनो पक्षकार स्वयं न्यायालय की आज्ञा के बिना न्यायालय के बाहर कर लेते हैं। एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 320(2) में उन अपराधों के समझौते के बारे में बताया गया है जिनका समझौता पक्षकार न्यायालय की आज्ञा के बिना नहीं कर सकते हैं अर्थात न्यायालय की मंजूरी से कर सकते हैं।
उपरोक्त दोनों मामले के अपराधों को अगर किसी अन्य न्यायालय को सौंप दिया गया है या किसी अन्य न्यायालय द्वारा आरोपी को दोषसिद्ध कर दिया गया है एवं दोषसिद्धि के बाद आरोपी ने अपीलीय न्यायालय में समझौता के लिए अपील की है तब राजीनामा कैसे होगा जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 (5) की परिभाषा
जब आरोपी के अपराध का विचारण किसी अन्य न्यायालय में सुपुर्द(सौप) दिया हो या किसी आरोपो को दोषसिद्ध होने के बाद उसका मामला अपीली में लंबित हो एवं आरोपी या अपराधी को पीड़ित व्यक्ति से समझौता करना है तब सुपुर्द न्यायालय या लंबित न्यायालय की आज्ञा या मंजूरी के बाद ही समझौता होगा।
उधारानुसार:- किसी सामान्य उपहति के मामले को अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास सौप दिया था है तब प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की आज्ञा या अनुमति के बिना शमनीय अपराध का समझौता नहीं होगा चाहे वह दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 320(1) अर्थात न्यायालय की बिना आज्ञा बाले समझौते का अपराध क्यू न हो। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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