If a Muslim woman does not get Mehr, can she get a divorce
मेहर शब्द का अर्थ होता है उपहार, स्त्रीधन या दहेज। जब कोई मुस्लिम पुरूष किसी मुस्लिम महिला से विवाह करता है तो वह मुस्लिम महिला को जिससे शादी कर रहा है, उसे मेहर के रूप में धनराशि, कोई भूमि, कोई मकान अनाज, वस्तु आदि देता है।
What is Mehr in Muslim marriage, what is the meaning of Mehr
मेहर देने के के बाद उस पुरूष का स्त्री पर पूरा अधिकार हो जाता है। स्त्री पुरूष से तलाक नहीं ले सकती है। मुस्लिम विधि में महिला और पुरुष के बीच शारीरिक संबंध को महत्व दिया जाता है और मेहर के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि शौहर अपनी बेगम से शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार रखता है। इस प्रकार मुस्लिम विधि के अंतर्गत हुआ निकाह एक संविदा होता है।
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि निकाह के बाद यदि शौहर अपनी बेगम को निकाह के समय दिए गए वचन के अनुसार मेहर ना दे तो क्या यह बात तलाक का कारण हो सकती है। पढ़िए इस प्रकार के विवाद का एक महत्वपूर्ण जजमेंट:-
1. अब्दुल कादिर बनाम मुसम्मात सलीमा:-
मुस्लिम स्त्री अगर किसी मुस्लिम पुरूष से संविदा अर्थात प्रस्ताव (एजाब),स्वीकृति (कबूल) और मेहर की प्रक्रिया के अनुसार निकाह कर लेती है तो वह अपने पति से सम्पूर्ण जीवन काल में कभी तलाक नहीं ले सकती है लेकिन अब्दुल कादिर बनाम मुसलमान सलीमा मामले में न्यायधीश महमूद ने मुस्लिम विवाह ओर मेहर की तुलना एक विक्रय संविदा से की है, इस विक्रय संविदा में मेहर को शारीरिक संबंध के प्रतिफल-स्वरूप माना जा सकता है। अगर पुरुष स्त्री को प्रतिफ़ल स्वरूप मेहर नहीं देता है तो निकाह यानी संविदा शून्य मानी जा सकती है लेकिन अगर मेहर नहीं दिया एवं स्त्री से शारीरिक संबंध भी नहीं बनाए तो विवाह संविदा शून्य नहीं होगी। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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