मध्य प्रदेश में दूसरे प्रदेश का जाति प्रमाण पत्र मान्य क्यों नहीं, हाईकोर्ट ने पूछा- MP NEWS

जबलपुर
। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश शासन से पूछा है कि किसी दूसरे प्रदेश का जाति प्रमाण पत्र मध्यप्रदेश में मान्य क्यों नहीं किया जाता। विद्वान न्यायमूर्ति श्री आनंद पाठक की एकल पीठ में माध्यमिक शिक्षक भर्ती के संबंध में एक याचिका प्रस्तुत हुई है। उच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश शासन को दिनांक 8 फरवरी 2023 तक जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा है। 

अनुच्छेद 16(1)- जन्म स्थान के आधार पर नौकरियों में विभेद प्रतिषेध 

याचिकाकर्ता शशिप्रभा राजपूत की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता वर्तमान में भिंड, मध्य प्रदेश की स्थायी निवासी हैं। उसका जन्म स्थान आगरा, उत्तर प्रदेश है। वर्ष 2014 में शादी करके भिंड आ गईं। संपूर्ण भारत में किसी भी प्रदेश में निवास करने एवं स्थाई रूप से बसने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार है। अनुच्छेद 16(1) के तहत जन्म स्थान के आधार पर लोक पद पर नौकरियों में विभेद को प्रतिषेध किया गया है। 

जिला शिक्षा अधिकारी इंदौर ने लीगल जाति प्रमाण पत्र को अमान्य बताया

याचिकाकर्ता लोधी जाति की है, जिनकी शादी लोधी जाति में ही हुई है। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2018 में माध्यमिक शिक्षक परीक्षा में शामिल हुई और ओबीसी श्रेणी में उत्तीर्ण हुईं। दस्तावेज सत्यापन हेतु 23 नवंबर 2022 को जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय इंदौर में उपस्थित हुई तो याचिकाकर्ता को अमान्य घोषित कर दिया गया। कारण दिया गया कि मध्य प्रदेश के सक्षम अधिकारी का जाति प्रमाण पत्र नहीं दिया। 

जाति प्रमाण पत्र तो जन्म स्थान से ही बनेगा ना

किसी व्यक्ति का जाति प्रमाण पत्र उसके पिता और माता की जाति के आधार पर जारी किया जाता है। याचिकाकर्ता के पिता और माता आगरा उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं इसलिए याचिकाकर्ता का जाति प्रमाण पत्र मुख्य रूप से आगरा उत्तर प्रदेश से ही जारी किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी जाति नहीं बदल सकता है। 

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