कानूनी भाषा के शब्द परिवाद का हिंदी मीनिंग शिकायत होता है अतः परिवादी शब्द से तात्पर्य शिकायतकर्ता हुआ। जब पुलिस थाने में किसी अपराध (चाहे वह संज्ञेय हो या असंज्ञेय) को रजिस्टर में दर्ज नहीं किया जाता है तब न्याय प्रक्रिया के नियमों के तहत शिकायतकर्ता द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 156(3) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के सामने, अपनी शिकायत प्रस्तुत की जाती है। इसी शिकायत को परिवाद कहते हैं। सवाल यह है की अगर कोई परिवादी या साक्षी निर्धन, गरीब है तो क्या मजिस्ट्रेट राज्य सरकार से उनके लिए अतिरिक्त खर्च दिलवा सकती है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 312 की परिभाषा
राज्य सरकार द्वारा बनाए गए किसी नियमों के अधीन अगर किसी व्यक्ति को आपराधिक मामले में आर्थिक सहायता का प्रावधान है तब कोई भी दण्ड न्यायालय को लगता है कि परिवादी या साक्षी को अतिरिक्त खर्चो की आवश्यकता है तब न्यायालय अपराध की जाँच, विचारण या अन्य कार्यवाही में हाजिर होने के लिए उचित खर्चे राज्य सरकार द्वारा दिये जाने के आदेश दे सकता है।
साधारण शब्दों में कहे तो किसी विशेष विधि जैसे कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम,1989 के धारा-3(1) एवं 3(2) के अधीन साक्षियों एवं फरियादी को किराए के पैसे तक राज्य सरकार द्वारा दिए जाते हैं, ऐसी राज्य सरकार के कानून में मजिस्ट्रेट को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 312 में शक्ति दी गई है की वह आदेश पारित करे।
महत्वपूर्ण नोट:- सहायता राशि का निर्धारण राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है अतः यह सभी राज्यों में अलग-अलग हो सकती है और यह भी संभव है कि राज्य सरकार किसी विशेष श्रेणी के मामलों में सहायता देने से इंकार कर दे। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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