पुलिस को जब किसी अपराध के विषय में सूचना प्राप्त होती है तो संबंधित थाने में FIR दर्ज की जाती है। फिर पुलिस इन्वेस्टिगेशन करती है। अन्वेषण के बाद जो भी निष्कर्ष निकल कर आते हैं, वह पूरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत की जाती है। इसे पुलिस की जांच रिपोर्ट या फिर पुलिस चालान भी कहते हैं। आइए जानते हैं कि क्या पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किए जाने वाले चालान की प्रतिलिपि, आरोपी व्यक्ति को दी जानी चाहिए अथवा नहीं:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 238 की परिभाषा:-
मजिस्ट्रेट को जब किसी अपराध की पुलिस इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट प्राप्त होती है तब वह विचारण प्रारंभ करने से पहले आरोपी व्यक्ति से यह जानेगा की उसे पुलिस रिपोर्ट की प्रतिलिपि प्राप्त हुई है या नहीं अगर धारा 207 के अंतर्गत नियमों का अनुपालन नहीं किया गया तब यह अनुपालन करना जरूरी था।
अर्थात आरोपी व्यक्ति को पुलिस रिपोर्ट की प्रतिलिपि देना एक विधिक कर्तव्य है क्योंकि धारा 207 में मजिस्ट्रेट विचारण से पहले आरोपी से पुलिस रिपोर्ट प्राप्त होने या न होने का कारण पूछेगा। ऐसा इसलिए आवश्यक है ताकि आरोपी व्यक्ति को पता चले कि पुलिस की इन्वेस्टिगेशन में क्या पाया गया और यदि वह पुलिस की जांच से असंतुष्ट है तो कोर्ट में उसे चुनौती दे सके। निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के लिए यह प्रथम एवं अनिवार्य कर्तव्य है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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