भारतीय दण्ड संहिता, 1860 का अध्याय-9 (क) के अंतर्गत धारा 171 क से 171 झ निर्वाचन संबंधित अपराध के लिए दण्डित करती है। लेकिन यदि पीड़ित व्यक्ति अनुसूचित जाति जनजाति वर्गों से है, तब यह अपराध और भी गंभीर हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति अथवा जनजाति वर्ग के सदस्य को वोट डालने से रोकता है, मतदान के लिए धमकाया जाता है या फिर रिश्वत दी जाती है, किसी व्यक्ति विशेष को वोट देने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसी स्थिति में अपराधी को विशेष विधि के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989 की धारा 3 (1) (ठ) की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग का सदस्य नहीं है वह ऐसे वर्ग के व्यक्तियों पर-:
1. मतदान न करने के लिए दबाव बनाएगा, या विशिष्ट व्यक्ति के लिए मतदान करने के लिए मजबूर करेगा या विधि द्वारा बनाए गए नियमो को छोड़कर मतदान करवाएगा या उनके नाम का फर्जी मतदान करेगा।
2.SC-ST वर्ग के सदस्य को नामनिर्देशन फाइल भरने नहीं देगा या प्रत्याशी का नाम वापस के लिए प्रोत्साहित करेगा, दबाब बनाएगा आदि।
3.किसी नामनिर्देशन में अभ्यर्थी के रूप में SC-ST के सदस्य के प्रस्ताव में या निर्वाचन में समर्थन नहीं करेगा।
ऐसा करने वाला अन्य वर्ग व्यक्ति धारा 3(1) ठ के अंतर्गत दोषी होगा।
सजा का प्रावधान:-
धारा 3(1) (ठ) के अपराध का विचारण विशेष न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होंगे। इस धारा के अपराध के लिए अधिकतम पाँच वर्ष की सजा एवं जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है।
पीड़ित व्यक्ति को राहत राशि
अनुसूचित जाति और जनजाति(अत्याचार निवारण) नियम,1995 नियम 12(4) के अनुसार इस अपराध के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति को राज्य शासन द्वारा 85 (पचासी) हजार की आर्थिक सहायता(संदाय) दी जाती है। यह राशि जिला कलेक्टर या SDM या जिला संयोजक अनुसूचित जाति एवं जनजाति कार्यालय द्वारा स्वीकृत होती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com