सिंधिया राजवंश का पहला मुख्यालय उज्जैन था, राणोजी ने सिंहस्थ शुरू किया था - History of Madhya Pradesh

मध्य भारत के सिंधिया राजवंश को कौन नहीं जानता। स्वतंत्रता के बाद जब भारत के ज्यादातर राजे रजवाड़े अपनी पहचान खो चुके हैं, सिंधिया राजवंश का अभिमान आज भी स्थापित है। ग्वालियर में स्थित जय विलास पैलेस सारी दुनिया में चर्चा का केंद्र होता है परंतु क्या आप जानते हैं सिंधिया राजवंश की स्थापना उज्जैन में हुई और यही उज्जैनी नगर मध्य भारत में सिंधिया राजवंश का प्रथम मुख्यालय था।

मध्य भारत में सिंधिया राजवंश की स्थापना किसने की 

एक के बाद एक लगातार 40 युद्ध में विजय प्राप्त करके पूरे भारतवर्ष में भगवा लहराकर शिवाजी महाराज का स्वप्न साकार करने वाले बाजीराव पेशवा के बाल सखा थे राणोजी सिंधिया। बचपन से ही बाजीराव के सभी अभियानों में राणोजी साए की तरह साथ रहते थे। पुणे के अभियान से वापस लौटते समय बाजीराव पेशवा, राणोजी शिंदे को मध्य भारत में शाहू जी महाराज के प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त करके चले गए थे। राणोजी सिंधिया ने उज्जैन को अपना मुख्यालय बनाया और यहीं से पूरे मध्य भारत में भगवा ध्वज के तले मुगलों द्वारा नष्ट की गई धर्म एवं संस्कृति की स्थापना की।

मुगलों द्वारा नष्ट किए गए महाकाल मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण करवाया

राणोजीराव सिंधिया ने कई युद्धों में अपने शौर्य का परिचय दिया। मालवा एवं मध्य भारत में कई विकास कार्य कराए परंतु सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मुगलों द्वारा नष्ट कर दी गई हिंदू धर्म एवं संस्कृति को फिर से समृद्ध बनाया। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उज्जैन में जिस मंदिर को नष्ट किया गया था वह ज्योतिर्लिंग है, तो उन्होंने तत्काल भव्य मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। आज भी उज्जैन में जिस मंदिर के दर्शन होते हैं वह राणोजीराव सिंधिया द्वारा बनवाया गया है।

500 साल तक बंद सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन शुरू किया 

राणोजीराव सिंधिया ने जब उज्जैन को अपना मुख्यालय बनाया तो उन्हें पता चला कि मुगलों ने किस प्रकार भारतीय परंपराओं को हमेशा के लिए खत्म कर देने की साजिश रची थी। लगातार 500 साल तक सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन नहीं हुआ था। राणोजीराव सिंधिया ने सुनिश्चित किया कि ना केवल सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन होगा बल्कि यह भारत का सबसे भव्य आयोजन होगा।

राणोजीराव सिंधिया ने मध्य भारत के शुजालपुर में 19 जुलाई 1743 को अंतिम सांस ली। आज भी राणोजीराव की समाधि शुजालपुर में स्थित है। लोग उन्हें मुगलों द्वारा खंडित की गई भारतीय धर्म एवं संस्कृति की पुनर्स्थापना के लिए याद करते हैं। (उपदेश अवस्थी)

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