त्रिपुंड का वैज्ञानिक महत्व क्या है, दिखावे के लिए तो नहीं लगाते, यहां पढ़िए - GK in Hindi

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भारतवर्ष में साधु संतों एवं भक्तों के माथे पर विभिन्न प्रकार के तिलक दिखाई देते हैं। हर तिलक की अपनी एक विशेष बात होती है। उसका वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व होता है। त्रिपुंड एक ऐसा ही चमत्कारी तिलक है। यह भक्तों का दिखावा नहीं बल्कि इसका साइंटिफिक लॉजिक भी है। आइए अध्ययन करते हैं:- 

माथे पर त्रिपुंड का धार्मिक महत्व

शिव संप्रदाय की भक्तगण अपने ललाट पर त्रिपुंड धारण करते हैं। माथे पर चंदन अथवा भस्म की 3 रेखाएं बनाई जाती है। जो बाएं से दाएं की तरफ बनाई जाती हैं। शिवमहापुराण के अनुसार त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से हर एक में नौ-नौ देवता निवास करते हैं।
1- अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रियाशक्ति, प्रात:स्वन तथा महादेव- ये त्रिपुंड की पहली रेखा के नौ देवता हैं।
2- ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा और महेश्वर- ये त्रिपुंड की दूसरी रेखा के नौ देवता हैं।
3- मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन तथा शिव- ये त्रिपुंड की तीसरी रेखा के नौ देवता हैं।
त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:

त्रिपुंड का वैज्ञानिक महत्व

माथे पर जहां त्रिपुंड धारण किया जाता है वह पीनियल ग्रन्थि का स्थान होता है। पीनियल ग्रंथि (जिसे पीनियल पिंड, एपिफ़ीसिस सेरिब्रि, एपिफ़ीसिस या "तीसरा नेत्र" भी कहा जाता है) पृष्ठवंशी मस्तिष्क में स्थित एक छोटी-सी अंतःस्रावी ग्रंथि है। यह सेरोटोनिन व्युत्पन्न मेलाटोनिन को पैदा करती है, जोकि जागने/सोने के ढर्रे तथा मौसमी गतिविधियों का नियमन (रेगुलेशन) करने वाला हार्मोन है। चंदन का त्रिपुंड लगाने से पीनियल ग्रन्थि के दोष समाप्त हो जाते हैं। पीनियल ग्रन्थि के दोष ज्यादातर ऐसे लोगों में पाए जाते हैं जो तनाव की स्थिति में और मौसम के विरुद्ध संघर्ष करते हैं।

कर्म के अनुसार तिलक का निर्धारण

नारद पुराण में उल्लेख आया है-
1. ब्राह्मण को ऊर्ध्वपुण्ड्र,
2. क्षत्रिय को त्रिपुण्ड,
3. वैश्य को अर्धचन्द्र,
4. अन्य को वर्तुलाकार 

त्रिपुण्ड्र बनाने की विधि एवं उसका आकार

मध्य की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्तिपूर्वक मंत्रोच्चार के साथ बाएं नेत्र से दाएं नेत्र की ओर लगाना चाहिए। यदि त्रिपुंड मन्त्र ज्ञात न हो तो ॐ नमः शिवाय कह कर त्रिपुण्ड्र धारण किया जाना चाहिए। इसका आकार बाए नेत्र से दाएं नेत्र तक ही होना चाहिए।
अधिक लंबा त्रिपुण्ड्र तप को और अधिक छोटा त्रिपुण्ड आयु का क्षय करता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article

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