कहीं तो ब्रेक लगाइये, पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत पर - Pratidin

कमोबेश देश के सभी शहरों में पेट्रोल के दाम उच्चतम स्तर को छूते हुए सौ रुपये के करीब तक पहुंचना उपभोक्ताओं की बेचैनी बढ़ाना वाला है। पडौसी देशो की तुलना करने पर भारत में यह सबसे महंगा है | वे भी हमारी ही तरह पेट्रोलियम पदार्थों का आयात करते हैं | पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों का प्रभाव देश के हर क्षेत्र में होता है | महंगाई बढने के साथ प्रगति की रफ्तार भी रुकती है |

यह बड़ा मुश्किल समय है। लॉकडाउन के बाद अनलॉक की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी बाजार-कारोबार अभी रवानगी नहीं पकड़ सके हैं। आम व्यक्ति की आय कोरोना संकट से बुरी तरह प्रभावित हुई है। लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं या उनकी आय का संकुचन हुआ है। ऐसे में नये साल में पेट्रोल व डीजल के दामों में कई बार हुई वृद्धि परेशान करती है।

सब जानते हैं, डीजल के दामों में तेजी ढुलाई भाड़े में वृद्धि करती है, जिसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। हाल के दिनों में आम उपभोग की वस्तुओं की कीमत में तेजी मुश्किल बढ़ाने वाली साबित हो रही है। यह वृद्धि जहां अनाज व दालों में नजर आ रही है, वहीं सब्जियों के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है। सरकार इस महंगाई को आर्थिकी को गति देने हेतु उत्पादकों व किसानों के लिये जरूरी बता रही है। देखना होगा, क्या वास्तव में उन्हें इसका लाभ मिल रहा है?

केंद्रीय बैंक की तरफ से भी महंगाई रोकने हेतु मौद्रिक उपाय होते नजर नहीं आये। सवाल है कि जब क्रय शक्ति में तेजी से गिरावट आई हो तो क्या महंगाई आर्थिकी को विस्तार देने में सहायक साबित हो सकती है? देश में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम उसकी लागत से तीन गुना अधिक हो चुके हैं, जिसमें उत्पाद शुल्क व राज्यों के टैक्सों की भी भूमिका है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना संकट से जूझ रही सरकार के आय के स्रोत भी सिकुड़े हैं। वहीं विकास योजनाओं हेतु उसे अतिरिक्त धन की जरूरत होती है। नये कर लगाना इस मुश्किल दौर में संभव नहीं है, ऐसे में सरकार पेट्रोलियम पदार्थों से होने वाले मुनाफे को बड़े आय स्रोत के रूप में देख रही है। लॉकडाउन के दौरान मई में पेट्रोल पर भारी ड्यूटी बढ़ाई गई थी, उसे कम नहीं किया गया है। उसके बावजूद कीमतों में लगातार वृद्धि जारी है।

राज्यों के वैट आदि कीमत में शामिल होने से विभिन्न राज्यों में पेट्रोल व डीजल के दामों में अलग तरीके से वृद्धि होती है। ऐसे में कच्चे तेलों में मामूली वृद्धि के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां कीमतों में संशोधन कर देती हैं। वैसे भी जब दुनिया में कच्चे तेल के दामों में अप्रत्याशित कमी आई तो सरकार ने उपभोक्ताओं को उसका लाभ नहीं दिया। अब जब दुनिया की आर्थिकी रवानगी पकड़ रही है तो आने वाले दिनों में कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय दामों में कमी की गुंजाइश कम ही नजर आती है।

ऐसे में उत्पाद शुल्क में कटौती के बिना पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में कमी संभव नहीं है, क्योंकि पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 32 रुपये से अधिक बतायी जाती है। फिर भी सरकार इनके दामों में राहत देने की दिशा में गंभीर नजर नहीं आती। आखिर पेट्रोल-डीजल की कीमतें कहां जाकर थमेंगी?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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