समन्वित योजना में शामिल हो, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ - Pratidin

1956 के 1 नवम्बर को बने मध्यप्रदेश की शक्ल अब वैसी नहीं है। उसका एक हिस्सा सन २००० के १ नवम्बर को अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था। तबसे अब तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच भारी भरकम कर्ज को लेकर बंटवारा नहीं हुआ है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक २०१९ में दोनों राज्यों के बीच करीब ३९  हजार १९९ करोड़ रुपए के कर्ज का बंटवारा बाकी था। जबकि २००० में यह आंकड़ा ४१ हजार ४९९ करोड़ रुपए था। अब तक छह प्रमुख मुद्दों को लेकर ३३ हजार करोड़ रुपए के कर्ज पर विवाद की स्थिति है। कर्ज से निबटने और विकास के लिए दोनों को एक समन्वित योजना की दरकार है।

वित्त विभाग के अधिकारियों के मुताबिक अभी भी छत्तीसगढ़ के साथ कई मुद्दों पर विवाद की स्थिति बनी हुई है, इसमें कर्ज भी शामिल है। इसमें कुछ मामले ऐसे हैं, जिसमें पूंजी निर्माण मप्र में हुआ है, लेकिन उसका ऋण छत्तीसगढ़ को चुकाना है। इन मामलों पर छत्तीसगढ़ कुछ कहने करने को तैयार नहीं है।

वैसे छत्तीसगढ़ ने मध्यप्रदेश से बंटवारे में मिले कुछ सामानों की इस हद तक अनदेखी की कि नये पुराने इलेक्ट्रानिक सामान ई-कचरे में तब्दील हो गये ये कंप्यूटर्स, फोटो कापियर, फैक्स मशीनें, प्रिंटर आदि दो दशकों बाद कबाड़ियों को बेच दिए गये। यह सब कौड़ियों के दाम बेचा गया। राज्य विभाजन के समय यह बात उठी थी कि मध्यप्रदेश ने ऐसे कंप्यूटर, एसी व अन्य सामग्री बंटवारे में दिए जो न तो वहां उपयोगी थे और न छतीसगढ़ में काम आने लायक है। इन्हीं में 197 कंप्यूटर सेट व अन्य सामान भी थे। बड़े -बड़े कंप्यूटर, जिनमें की-बोर्ड, माॅनिटर व सीपीयू लगे थे। 

छतीसगढ़ ने अपने मंत्रालय को डिजिटल बनाने की पहल 2003 से शुरू की। तीन साल तक मध्यप्रदेश से आया सारा सामान यहाँ वहां घूमता रहा और अनुपयोगी हो गया। फिर केंद्र सरकार की एक योजना के तहत नए कंप्यूटर लगाए जाने लगे। नए कंप्यूटर सचिवों की टेबल पर लगाए गए और उनके द्वारा इस्तेमाल कंप्यूटर उनके अधीनस्थ अफसरों को दिए जाने लगे। 2011 में नया मंत्रालय बना। तब हर टेबल पर कंप्यूटर रखे गए। बड़ी-बड़ी कंपनियां भी अपनी बैलेंस शीट में मशीनों, वाहनों और अन्य चीजों का हर साल डेप्रिसिएशन दिखाती हैं, जिसे वाणिज्य की भाषा में अवमूल्यन बोलते हैं। दोनों सरकारों ने इसका ध्यान नहीं रखा और लाखों का सामन कूड़ा हो गया।

राज्य बंटवारे में छत्तीसगढ़ को जो कम्प्यूटर मिले थे। तब इनकी कीमत २८ लाख रुपए थी। जिन्हें अब कूड़े के भाव बेच दिया गया।  

कुछ जिलों में फैली नक्सली गतिविधियां छत्तीसगढ़ की प्रमुख समस्या है। तो मध्यप्रदेश भी इससे मुक्त नहीं है। नक्सलवाद के चलते दोनों तरफ आज भी ऐसे कई इलाके हैं जो विकास के लिए तरस रहे है सरकारे जब भी इन क्षेत्रों में विकास की योजना बनाती है, नक्सली इसे ध्वस्त कर देते हैं| यही वजह है कि  छत्तीसगढ़ राज्य का कुछ हिस्सा सरकार के लिए पहेली बना हुआ है, जिसकी वजह से इसे अबूझमाड़ कहा जाता है|

विभाजन के बाद अपना एक बड़ा हिस्सा और नक्सली समस्या छत्तीसगढ़ को दे चुके मध्यप्रदेश में नक्सलियों की समस्या है। बालाघाट सहित मप्र के कुछ जिलों को सुरक्षित मानते हुए यहां बढ़ रही नक्सली घुसपैठ पुलिस- प्रशासन की चिंता बढ़ा रही है। हाल ही में लाखों  रुपए के दो इनामी नक्सलियों की मुठभेड़ में मौत ने मध्यप्रदेश के सीमावर्ती जिले बालाघाट में नक्सली उपस्थिति की गंभीरता को बढ़ा दिया है। नक्सलियों ने बालाघाट को अपनी पनाहगाह बनाए रखा था और है ।

तीन राज्यों का सीमावर्ती इलाका होने से बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, अनूपपुर और सिंगरौली जिले नक्सलियों के लिए न केवल बड़ा गलियारा बने बल्कि इनका घना जंगल नक्सलियों के लिए मुफीद भी साबित हुआ है। हालांकि बालाघाट के अलावा इन जिलों में कभी कोई बड़ी नक्सली वारदात सामने नहीं आई। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बालाघाट में नक्सलियों ने अलग-अलग स्थानों में वारदात की है।

दोनों राज्यों के विकास के लिए समन्वित योजना और प्रयास हो सकते थे | दोनों राज्यों में लम्बे समय तक जिस एक  पार्टी की सरकार रही उसने या नौकरशाही ने कभी इस दिशा में प्रयास नहीं किया | विकास का पहला पायदान समन्वय है जिसकी पहल जरूरी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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