जिस देश में बचपन ऐसा हो, फिर उसकी जवानी क्या होगी ? - Pratidin

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू कहा करते थे “'बच्चे देश का भविष्य होते हैं। बच्चे देश की वास्तविक ताकत और समाज की नींव हैं। आज के बच्चे कल के भारत का निर्माण करेंगें।“ एक ताज़ा अध्ययन में यूनिसेफ ने चेतावनी दी कि कोरोना वायरस महामारी फैलने के कारण भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों के करीब 2.2 करोड़ बच्चे अपनी प्रारंभिक शिक्षा से वंचित हो गए हैं। 

सरकार ने हमें 5 ट्रलियन डालर की अर्थव्यवस्था का सपना दिखाया था। देश में अभी भी भ्रूण हत्या, बाल व्यापार, यौन दुर्व्यवहार, लिंग अनुपात, बाल विवाह, बाल श्रम, स्वास्थ्य, शिक्षा, कुपोषण जैसी समस्याएं मौजूद हैं। बच्चों को हिंसा, भेदभाव, उपेक्षा शोषण और तिरस्कार से निजात दिलाने में कोई कामयाबी नहीं हैं।

ताजा रिपोर्ट में दुनिया भर में बच्चों की देखभाल की स्थिति, शुरुआती शिक्षा और कोविड-19 के कारण महत्वपूर्ण पारिवारिक सेवाओं के बंद होने के पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।दक्षिण एशिया के अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका इस अध्ययन में शामिल है। दक्षिण एशिया के लिए यूनिसेफ की क्षेत्रीय निदेशक जीन गफ ने कहा है, 'कोविड-19 महामारी से दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में बच्चे भी शामिल हैं। लंबे समय से स्कूल के बंद रहने और दूरस्थ शिक्षा की सीमित उपलब्धता के कारण वे अपने शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं।'

वास्तव में कोरोना से दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में बच्चे भी शामिल हैं। बच्चों की देखभाल और शुरुआती शिक्षा उन्हें उनकी अधिकतम क्षमता का एहसास जरूरी है। यदि अभी भी हम कुछ करने में असफल रहे तो भारत के लाखो बच्चों का भविष्य खराब हो सकता है। इससे पहले पिछले महीने बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली ब्रिटेन की संस्था "सेव द चिल्ड्रन" ने भी कहा था कि “कोरोना महामारी ने एक अभूतपूर्व शिक्षा आपातकाल खड़ा कर दिया है जिसके कारण करोड़ों बच्चों से शिक्षा का अधिकार छिन जाएगा।“

अपनी रिपोर्ट में सेव द चिल्ड्रन संस्था ने संयुक्त राष्ट्र के डाटा का हवाला देते हुए लिखा है कि अप्रैल में दुनिया भर में 1.6 अरब बच्चे स्कूल और यूनिवर्सिटी नहीं जा सके। यह दुनिया के कुल छात्रों का 90 प्रतिशत हिस्सा है। रिपोर्ट में लिखा गया है, "मानव इतिहास में पहली बार वैश्विक स्तर पर बच्चों की एक पूरी पीढ़ी की शिक्षा बाधित हुई।"

इसके परिणामस्वरूप जो आर्थिक तंगी देखी जाएगी, उसके कारण आने वाले वक्त में स्कूलों के एडमिशन पर बुरा असर पड़ेगा। इतना ही नहीं, रिपोर्ट के अनुसार अब 9 से 11 करोड़ बच्चों के गरीबी में धकेले जाने का खतरा भी बढ़ गया।इससे परिवारों की आर्थिक रूप से मदद करने के लिए छात्रों को पढ़ाई छोड़ कम उम्र में ही नौकरियां शुरू करनी होंगी। ऐसी स्थिति में लड़कियों की जल्दी शादी भी कराई जाएगी और करीब एक करोड़ छात्र कभी शिक्षा की ओर नहीं लौट पाएंगे।

मसला सिर्फ पढ़ाई का ही नहीं है। गरीबी और टीकाकरण जैसे दूसरे मसले भी बच्चों को प्रभावित कर रहे हैं। यूनिसेफ और सेव द चिल्ड्रेन के एक संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि कोरोना वायरस महामारी 2020 के अंत तक 8.6 करोड़ और बच्चों को पारिवारिक गरीबी में धकेल सकती है।

विश्लेषण में कहा गया है कि यदि महामारी के कारण होने वाली वित्तीय कठिनाइयों से परिवारों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो कम और मध्यम आय वाले देशों में राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों की कुल संख्या वर्ष के अंत तक 67.2 करोड़ तक पहुंच सकती है।

एक और रिपोर्ट, ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट-2018 के अनुसार विश्व के कुल अविकसित बच्चों का एक तिहाई हिस्सा हमारे देश भारत में है। कुपोषण का सीधा सा मतलब है कि खाने को भोजन नहीं है। ना बच्चे के पास और ना ही उस मां के पास जो ख़ून और भोजन की कमी के बावजूद उसे जन्म तो दे देती है मगर खाना नहीं दे पाती है। ये मदर इंडिया है। जो ख़ुद भी कुपोषित है और जिसकी संतानें भी भोजन के आभाव में दम तोड़ रही हैं। हमारे देश में पोषण के लिए कई योजनाएं हैं और खाद्य सुरक्षा की गारंटी भी। इसके बावजूद ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 के हिसाब से भारत 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर है। विश्व शक्ति बनने का एक रूप ये भी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुपोषण के कारण पांच साल से कम उम्र के करीब दस लाख बच्चों की हर साल मौत हो जाती है।

विश्व बैंक की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 10 से 14 करोड़ के बीच बाल श्रमिकों की संख्या है। बाल अधिकारों के हनन के सर्वाधिक मामले भारत में ही होते हैं। प्रगति के लंबे-चौड़े दावों के बावजूद भारत में बच्चों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फार एजुकेशन (डाइस) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार हर सौ में महज 32 बच्चे ही स्कूली शिक्षा पूरी कर पा रहे हैं। देश में पांच से १४ साल तक के उम्र के बाल मजदूरों की तादाद एक करोड़ से ज्यादा है।

हम अनाथ बच्चों के बालगृहों की हालत देखें तो यह और भी भयावह है। भारत में इस समय 1500 गैरपंजीकृत चाइल्ड केयर संस्थान (सीसीआई) हैं। यानी वे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रजिस्टर नहीं किए गए हैं। देश में कुल 5750 सीसीआई हैं और कुल संख्या 8000 के पार बताई जाती है।इस डाटा के मुताबिक सभी सीसीआई में करीब दो लाख तैंतीस हजार बच्चे रखे गए हैं। हमारे देश में बच्चों की स्थिति हर मामले में काफ़ी चिंताजनक है।

दुष्काल और मंदी की चपेट में होने के बावजूद सरकार ने हमें 5 ट्रलियन अर्थव्यवस्था का सपना दिखाया था । हमारा देश अभी भी भ्रूण हत्या, बाल व्यापार, यौन दुर्व्यवहार, लिंग अनुपात, बाल विवाह, बाल श्रम, स्वास्थ्य, शिक्षा, कुपोषण जैसी समस्याओं से ग्रसित हैं। हम आज तक अपने बच्चों को हिंसा, भेदभाव, उपेक्षा शोषण और तिरस्कार से निजात दिलाने में कामयाब नहीं हो सके हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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