इस दशहरे पर प्रदूषण का रावण जलाइए - Pratidin

युगों से आप रावण जलाते आ रहे हैं, हर साल वो रूप बदल कर समाज में उपस्थित दिखता है| क्या आपको मालूम है, इस बार उसने आपके देश भारत में १.१६ लाख बच्चों की जान हर ली है |इसबार उस रावण की शक्ल प्रदूषण की है | प्रदूषण का कहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी तबाही का कारण बन रहा है| पिछले साल दुनिया में करीब पांच लाख नवजात शिशु इसी वजह से मौत के आगोश में चले गये और भारत में यह संख्या १.१६ लाख रही है | वैसे प्रदूषण दुनिया में मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है|

हमारे देश में मौत के प्रमुख कारणों में वायु प्रदूषण तीसरे स्थान पर है, इससे कार्य-क्षमता पर भी नकारात्मक असर होता है| प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों से २०३० तक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए नीतिगत प्रयास करने का आह्वान किया है| 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण कोरोना से पहले के स्तर पर पहुंचने लगा है| दिल्ली समेत उत्तर भारत के अनेक शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में है|. जाड़े के मौसम में कोहरे, पराली व अलाव जलाने तथा बिजली की अधिक खपत से प्रदूषण में तेज बढ़ोतरी की आशंका है|

दुर्भाग्य की बात है कि इस समस्या पर अंकुश लगाने और इसके समाधान की कोशिशों के दावों के बावजूद इसके खतरे में कमी नहीं आ रही है| यह चुनौती कितनी भयावह है, इसका अंदाजा वैश्विक वायु स्थिति की ताजा रिपोर्ट से लगाया जा सकता है| साल २०१९ में वायु प्रदूषण के कारण हुईं या गंभीर हुईं बीमारियों की वजह से पूरी दुनिया में ६७ लाख मौतें हुई थीं, जिनमें से १६ लाख लोग भारत के थे|

हम घर के बाहर हवा में मौजूद प्रदूषणकारी तत्वों का आकलन देखें, तो चिंता और बढ़ जाती है. साल २०१० और २०१९ के बीच के एक दशक की अवधि में भारत में पीएम २.५ की मात्रा में ६१ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है|ये तत्व हमारे देश में होनेवाली आधे से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार हैं| यह भी उल्लेखनीय है कि नवजात शिशुओं में लगभग ६४ प्रतिशत मौतें घर के भीतर की हवा में मौजूद जहर से हुई है| प्रदूषण के कारण होनेवाली बीमारियों और शारीरिक क्षमता में कमी के कारण कार्य दिवसों का भी बड़ा नुकसान होता है, जो भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है |इससे साफ जाहिर होता है कि घर के भीतर चूल्हा, अंगीठी आदि तथा बाहर औद्योगिक धुआं, निर्माण कार्यों और वाहनों से फैलनेवाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर प्रयासों की आवश्यकता है|

पराली जलाने का यह काम आगामी दिनों में बहुत तेज हो सकता है| इसके साथ ही दीवाली के पटाखों और मौसम ठंड होने से दिल्ली समेत उत्तर भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने की आशंका है| इन कारणों की चर्चा करते हुए यह भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि पराली जलानेवाले किसानों और मौसम के बदलने पर सारा दोष मढ़ना कहाँ तक उचित है| शहरों की हवा में जहर घुलने के कई कारण स्थानीय भी हैं| वाहनों से उत्सर्जन, अंधाधुंध निर्माण कार्य और औद्योगिक इकाइयों का धुआं इसके लिए बराबरी के जिम्मेदार हैं|

आपको मालूम है विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित २० शहरों में १४ शहर भारत में ही हैं और दिल्ली भी उनमें शामिल है| शहरीकरण से न केवल आबादी का घनत्व बढ़ रहा है, बल्कि जरूरतों को पूरा करने का दबाव भी बढ़ा है| दुर्भाग्य से हमारे शहरों का प्रबंधन लंबे अरसे से लचर है तथा नगर निगम व नगरपालिकाएं बदहाल हैं| प्रदूषित हवा में सांस लेने से हुईं बीमारियों के कारण सालाना लाखों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं| इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्गों पर होता है| इस समस्या से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है तथा मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा होती हैं|

एक वैश्विक रिपोर्ट ने चिन्हित किया है कि इससे निपटने के लिए आपको हमको मतलब सबको मिलकर काम करना होगा | घर, शहर और देश के भीतर और बाहर सौर ऊर्जा समेत स्वच्छ ऊर्जा के अन्य उपायों को बढ़ावा देने में लगना होगा सौर ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि के लिए ऐसे उपायों को अमल में लाने की गति तेज करना होगी जिससे हम प्रदूषण रूपी रावण और उसके परिजनों के रूप में आरहे रोगों को समूल नष्ट कर सकें| तो इस बार जलाइए, इस रावण को |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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