‘राम’ से बड़ा ‘राम का काज’ / EDITORIAL by Rakesh Dubey

राम की नगरी में राम का काज चल रहा है | “श्रेय” की लूट भी मची है तो आलोचना के कटु वचन भी थम नहीं रहे हैं |आलोचना के बिंदु संविधान की मर्यादा, धर्मनिरपेक्षता और मुहूर्त है | “श्रेय जिसे लूटना हो लूटे, राम का काज होना चाहिए |” इस पक्ष में देश के करोड़ों लोग हैं, इस अवसर पर स्व. राजीव गाँधी और स्व.पी वी नरसिंह राव और कल्याण सिंह के साथ तत्समय राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन और आन्दोलन से इतर मुक्ति की के लिए सदाशयी व्यक्तियों की लम्बी कतार याद आती है, जो कोरोना के या किसी [?] के कारण कल अयोध्या में नहीं होगी  | आज की भांति त्रेता में भी राम के काम में हनुमान, नल,  नील जामवंत से लेकर गिलहरी तक सब ही तो लगे थे | देश, काल और परिस्थिति के वशीभूत कोई पहले दिन से जुटा है तो किसी ने आज मन में राम से बड़ा राम का काज माना है |

आम धारणा के अनुसार २० बरस का एक युग होता है | आलोचना के कारण को और समझने के लिए मैंने दो युग दृष्टाजन का परामर्श लिया | श्री महेश श्रीवास्तव और पद्म श्री विजय दत्त श्रीधर देश के बौद्धिक वर्ग के शीर्ष पर हैं | दोनों से हुई बातचीत से निकला विचार नवनीत देश के लिए निसंदेह प्रकाश पुंज का काम करेगा | दोनों इस बात पर सहमत है कि भारत में न्यायपालिका सर्वोच्च है और उसके निर्णय का स्वागत करने के बाद अब ऐसी आलोचनाओं का कोई अर्थ नहीं है | दोनों की सहमति विधिक आदेश के अनुरूप बनने वाले मन्दिर से है |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कार्यक्रम में जाने को लेकर महेश जी का साफ कहना है कि यह राजनीति है जो ‘रार’ पैदा कर रही है, संविधान में धर्म निरपेक्ष शब्द १९७६  में ४२ वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया है। राजनीतिक विरोध तो डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद का भी सोमनाथ मन्दिर जाने पर भी हुआ था | संविधान की मूल प्रति में मौजूद चित्र श्री राम के जनमानस में बसे होने का उदहारण है, आज राम को कल्पना कहना ठीक नहीं है | प्रधान मंत्री देश के होते हैं, उन्हें जो भी बुलाएगा वे जायेंगे | यह आयोजन वैसे भी ट्रस्ट का है | उनका मानना है कि जो वामपंथी आलोचक इसमें धार्मिक तुष्टिकरण की बात कह रहे हैं |उन्हें अपनी दृष्टि सब तरफ घुमाना चाहिए, अब तो पश्चिम बंगाल के दुर्गा पंडालों को भी सहायता दी जाती है | अन्य वर्गों के धार्मिक ओहदों पर काबिज व्यक्ति और संस्थान सहायता पा ही रहे हैं | कार्यक्रम के मुहूर्त को लेकर उनका साफ़ कहना है शंकराचार्य पूज्य हैं और दर्शन विषय के अधिकारिक संस्थान है | ज्योतिष एक विषय है और उसके अनेक श्रेष्ठ ज्ञाता देश में हैं |

श्री विजय दत्त श्रीधर तो धर्म निरपेक्षता के पक्ष में और आगे बढ़कर बात कहते हैं |उनका कहना है देश को सभी धार्मिक संस्थानों को आर्थिक मदद देना बंद करना चाहिए | धर्मनिरपेक्ष का अर्थ वोट बैंक का प्रबन्धन नहीं होना चाहिए |  धर्म निरपेक्षता के नाम पर समुदाय विशेष  के धार्मिक और गैर धार्मिक संस्थान को प्रश्रय देने  को वे गलत मानते हैं | उनके मत में सही धर्मनिरपेक्षता समाज के आश्रय से आती है, सरकारों के आश्रय से नहीं | वे गाँधी के राम और रामराज्य को श्रेयस्कर मानते है | वे राम के उस सर्व समावेशी समाज के पक्षधर है जिसमे सारी प्रजा सुखी हो | वे तुलसीदास जी की ये पंक्तियाँ भी उद्घृत करते हैं |” जासु राज प्रजा दुखारी सो नृप अवस नरक अधिकारी |

भारत में गाँधी और नेहरु के बगैर सब अधूरा है | प्रशंगवश यह बात इस दौर में मौंजू है |महात्मा गांधी अपने निजी और सार्वजनिक दोनों जीवन में एक धार्मिक व्यक्ति थे और वे राजनीति और धर्म के मध्य नज़दीकी संबंध के हिमायती थे। गांधी राजनीति को नैतिकता के मूल्यों पर आधारित करना चाहते थे और उनके नैतिकता के मूल्य धार्मिक रंग में रंगे हुए थे।पंडित नेहरू  नेहरू गांधी के उलट राजनीति व धर्म के बीच किसी भी प्रकार का कोई भी संबंध रखने के खिलाफ थे। वे धर्मनिरपेक्षता को भारतीय स्वभाव में समायोजित करना चाहते थे।

आजकल श्रेय लेने और आलोचना करने का फैशन  चल रहा है | इस वर्तमान प्रसंग में याद आते हैं, राम जन्मभूमि आन्दोलन की धुरी रहे गोविन्द जी, वे ही कौडिपक्कम नीलामेघाचार्य गोविन्दाचार्य | वे अब भी कहते हैं “कोई जरूरी नहीं इस खेल में सारे गोल आप ही करें, परिस्थिति के हिसाब से दूसरे खिलाडी को पास देकर गोल करने का अवसर दें | महत्वपूर्ण गोल होना है, गोल कौन करता है यह बात कम महत्वपूर्ण है |  
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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