क्या चम्बल के बीहड़ों के दिन बदलेंगे ?

केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने फिर एक बार चम्बल के बीहड़ों को कृषि योग्य बनाने का बीड़ा उठाया है। बैठकों सर्वेक्षण के दौर जारी है, परिणाम समय बतायेगा। वैसे चंबल के बीहड़ों के विकास के लिए वर्ष 1919 से कवायद जारी है, गिनती करें तो अब तक 50 से ज्यादा परियोजनाएं बन चुकी हैं, परन्तु अब तक एक भी परियोजना  कामयाब नहीं हुईं है।

वैसे राज्य और केंद्र सरकार दोनों की रूचि बीहड़ सुधार में है। अधिकृत जानकारी १९७१ से उपलब्ध है। १९७१ में तत्कालीन केंद्र सरकार ने बीहड़ सुधार के लिए एक विशाल परियोजना शुरू की थी। २७ वर्षों में चार चरणों की इस परियोजना की लागत १२५० करोड़ रुपये थी। इतने  वर्षों में इस क्षेत्र की सभी परियोजनाओ के परिणाम के रूप में लगभग २००० हेक्टेयर भूमि ही पुन: प्राप्त  की जा सकी। १९८० और १९९०  के दशक राज्य सरकार ने एरियल सीडिंग डिवीजन की स्थापना की। बबूल विलायती बबूल और जंगल जलेबी जैसी प्रजातियों के लिए एरियल सीडिंग की शुरुआत की गई थी। लेकिन ये प्रयोग भी असफल रहा। इन बीहड़ों को विकसित करने का अंतिम प्रयास वर्ष २०१५ में हुआ। 'मध्य प्रदेश के चंबल क्षेत्र में बीहड़ों के उद्धार के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण ' नाम की इस योजना के अंतर्गत  राज्य सरकार ने चंबल, सिंध, बेतवा और क्वारी नदियों के साथ-साथ यमुना की सहायक नदियों (चंबल- यमुना की सहायक नदी) की पहचान की है। इस योजना में तीन जिलों मुरैना, श्योपुर और भिंड में आने वाली ६८८३३ हेक्टेयर भूमि को खेत में परिवर्तित करने की परिकल्पना की गई थी । यह योजना तब सिरे नहीं चढ़ सकी।

अब फिर से चंबल के बीहड़ों के विकास की बात चल रही है। जहां तक चंबल के बीहड़ों को समतल कर खेती योग्य बनाने की बात है यह एक दूर की कौड़ी है ये बीहड़ काफी गहरे और ज्यादा कटाव वाले है। कृषि विशेषज्ञों का मत है बीहड़ों को समतल कर अनाज की खेती संभव नहीं है। बीहड़ों की जमीन के ढांचे में थोडा बहुत बदलाव कर बागवानी मसलन अमरूद, आंवला, अनार, किन्नू, आम, बेर के साथ नीम, बबूल आदि के पेड़ लगाए जा सकते हैं। जिससे चंबल के इलाके में अच्छी बारिश होने से बीहड़ों से मुक्त  हो रही जमीन से निर्मित खेती को लाभ होगा। बीहड़ों की जमीन पर विकास के कार्य करने के दौरान किसानों का रोष भी झेलना पड़ता है। जो कभी-कभी फौजदारी मुकदमों में बदल जाता है।

बीहड़ों में औद्योगिक विकास की संभावना पर उद्ध्योग विशेषज्ञों का मत है अगर व्यावहारिक सोच के काम किया जाए तो बीहड़ों में उद्योग लग सकते हैं। बीहड़ों में बागवानी और इनसे संबंधित खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग लगाए जा सकते हैं और इन उद्योगों को लगाने के लिए जरूरत भर की जमीन बीहड़ों में आसानी से विकसित की जा सकती है।

एक बात और भी है बीहड़ को कृषि उपयुक्त बनाने के लिए समतल करना भी पारिस्थितिक समस्याएं पैदा कर सकता है क्योंकि चंबल नदी जिस क्षेत्र में है वह कई प्रकार की मछलियों, मगरमच्छों और कई प्रवासी पक्षियों का घर भी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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