When murder in defense of property is excusable
धारा 100 के ही समान्तर भाग है आज की धारा 103, धारा 100 में हमने आपको बताया था कि व्यक्ति शरीर की रक्षा के लिए हमलावर पर जवाबी हमला करे और उसमें हमलावर की मृत्यु हो जाए तो वह किन परिस्थितियों में निजी सुरक्षा के अधिकार में आती है। वैसे ही हम आज की धारा के बारे में जानकारी देंगे कि व्यक्ति किन परिस्थितियों में स्वयं या अन्य की संपत्ति की सुरक्षा निजी प्रतिरक्षा के अधिकार द्वारा कर सकता है जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 103 की परिभाषा:-
संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा अधिकार के लिए व्यक्ति अपनी या अन्य की सुरक्षा निम्न परिस्थितियों में करता है और उसके करना हमलावर की मृत्यु भी हो जाती है तो वह अपराध नहीं होगी:-
1. कोई व्यक्ति लूट के उद्देश्य से घर में घुस रहा हो तब।
2. रात्रि में गृह-भेदन (रात में घर में घुसना) करना कोई आपराधिक उद्देश्य से तब।
3.अग्नि द्वारा मकान, तम्बू आदि जलाना या जलयान में रहने वाली संपति को नुकसान पहुचना।
4.चोरी, कोई संपति को नष्ट करना अर्थात:- बाग बगीचे, खेतों की संपत्ति को नष्ट करना आदि।
उपयुक्त परिस्थितियों में व्यक्ति को निजी प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त है, लेकिन अगर कोई हमलावर आत्म-समर्पण करता है तब यह अधिकार समाप्त हो जाता है, और उसके बाद आप मृत्यु करते हैं तो आप हत्या के अपराधी होंगे।
उधरणानुसार वाद:- हीरा राय बनाम बिहार राज्य- कुछ व्यक्ति खतरनाक हथियारों के साथ बलपूर्वक फसल काटने के लिए खेत पर गए थे उन्होंने खेत के स्वामी पर अचानक हमला कर दिया। आरोपी जो खेत के मालिक का नोकर था हमलावर पक्ष के एक साथी पर हमला1किया क्योंकि खेत के मालिक पर पहले उनको मृत्यु करने की आशंका उत्पन्न हो गई थी,इस लिए खेत के मालिक के नोकर ने हमला किया था। इस मामले में न्यायालय द्वारा विनिशिचत किया कि लूट के मामले में जहाँ लूट का अपराध हो जाता हैं या लूट का प्रयास शुरू हो जाता है, वहाँ पर निजी प्रतिरक्षा का अधिकार प्रारंभ हो जाता है इस लिए खेत मालिक के नोकर द्वारा किया गया अपराध क्षमा योग्य है।
बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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