प्राधिकृत अधिकारी को प्रश्नों के उत्तर से इनकार करना भी अपराध है, FIR हो सकती है / ABOUT IPC

शासकीय विभागों में वर्तमान समय में जनसुनवाई या कोई प्राधिकृत अधिकारी आपने विभाग से सम्बंधित किसी व्यक्ति या कर्मचारियों से पूछताछ करते है, जिससे की विभाग में हो रहे काम- काज की जानकारी सही प्राप्त हो सके। कभी कभी बाहरी शिकायत विभाग में दर्ज हो जाती है और किसी व्यक्ति को पूछताछ के लिए बुलाया जाता है ऐसे में वह व्यक्ति या कर्मचारी जो प्राधिकृत अधिकारी के प्रश्नों के गलत उत्तर देता है या उत्तर देने से इन्कार करता है तब उस पर भी आईपीसी की धारा के अंतर्गत मामला दर्ज होता है जानिए।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 179 की परिभाषा:-

ऐसे सरकारी अधिकारी के प्रश्नों के उत्तर देने माना करना या जानबूझकर कर गलत उत्तर देना जिसको प्रश्न पूछने का अधिकार है। वह व्यक्ति जो गलत उत्तर देगा या उत्तर देने से इनकार करना वह धारा 179 के अंतर्गत दोषी होगा।
【नोट:- 1. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 121 से 132 के अंतर्गत साक्षी को पूछे गए कुछ प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाध्य न होने की छूट दी गई। लेकिन यदि वह गलत उत्तर देता है तब उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 के अधीन दण्डनीय अपराध है।
2. दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अधीन पुलिस अधिकारी दुआरा कि जा रही जाँच के दौरान कोई गवाह अपने बचाव के लिए पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने से इनकार कर सकता है। और इस प्रकार की छूट उन्हें संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत अधिकार प्राप्त है। इसी *''संदर्भ में सत्पथी बनाम पी. एल. दानी महत्वपूर्ण वाद हैं,,।*】

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 179 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-

इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते है। यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई जिस न्यायालय में अपराध किया गया है वहाँ पर या अपराध न्यायालय से अलग किया गया है तब किसी भी मजिस्ट्रेट के पास की जा सकती है। सजा - 6 माह की कारावास या 1000 रु जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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