पूरे विश्व के साथ भारत में स्कूल से लेकर नामचीन विश्वविद्यालय इन दिनों ऑनलाइन पाठ्यक्रम में हाथ आजमा रहे हैं। इससे यह वैश्विक प्रश्न पैदा हो गया है कि क्या विश्व के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों द्वारा अचानक ऑनलाइन पढ़ाई का रुख करना एक फौरी बदलाव है और बाद में वे दोबारा पारंपरिक परिसर आधारित शिक्षा पर लौट जाएंगे? शायद ऐसा ही होगा। लंदन के प्रतिष्ठित टाइम्स हायर एजुकेशन ने दुनिया के 53 देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के 200 विद्वानों से इस विषय पर बात और एक विशद सर्वे किया। इस सर्वे में यूरोप और अमेरिका के साथ चीन और भारत जैसे देश शामिल थे। सवाल था: क्या आपके विश्वविद्यालय में अगले पांच वर्ष में पूर्णकालिक ऑनलाइन डिग्री पाठ्यक्रम बढ़ेंगे? जवाब में 85 प्रतिशत लोगों ने माना कि ऐसा होगा।
एक और पहलू है जहां विशुद्ध ऑनलाइन शिक्षा दुनिया भर में मौजूदा कॉलेज आधारित शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। अमेरिका और ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बने रहने के लिए विदेशी विद्यार्थियों, खासकर चीन और भारत के विद्यार्थियों की आवश्यकता है। ये विश्वविद्यालय अपने छात्रों की तुलना में विदेशी छात्रों से कई गुना अधिक शुल्क लेते हैं। अधिक शुल्क देने वाले विद्यार्थी अच्छी खासी तादाद में हैं। न्यूयॉर्क के न्यू स्कूल में 31 प्रतिशत, फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्रॉलजी में 28 प्रतिशत, न्यूयॉर्क के रोचेस्टर विश्वविद्यालय में 27 प्रतिशत, कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय में 22 प्रतिशत, बॉस्टन विश्वविद्यालय में 21 प्रतिशत विदेशी विद्यार्थी हैं।
क्या ऐसे विदेशी विद्यार्थी पाठ्यक्रम के पूरी तरह ऑनलाइन होने और अपने देश से ही पढ़ाई करने की सुविधा होने के बाद भी इन विश्वविद्यालयों में रुचि दिखाएंगे? ऐसे अधिक शुल्क देने वाले विद्यार्थियों को गंवाने की आशंका से ही उस समय हड़कंप मचा जब ट्रंप प्रशासन ने यह घोषणा की कि अमेरिका में रहने वाले जिन विदेशी छात्रों के पाठ्यक्रम ऑनलाइन हो चुके हैं उनका वीजा रद्द कर दिया जाएगा और उन्हें तत्काल अमेरिका छोडऩा होगा। अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने इतना दबाव बनाया कि ट्रंप प्रशासन को उक्त आदेश वापस लेना पड़ा। ऑनलाइन शैक्षणिक पाठ्यक्रम प्लेटफॉर्म मसलन मूक (मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स) काफी समय से हैं और वेंचर कैपिटलिस्ट के पसंदीदा हैं। कोर्सेरा, खान अकादमी और यूडीमाई आदि अमेरिका के कुछ उदाहरण हैं। जबकि चीन में आधा दर्जन से अधिक सूचीबद्ध एडटेक साइट हैं। ऑनलाइन टेस्ट की तैयारी कराने वाली वेबसाइट भारत में भी बच्चों को कोचिंग दे रही हैं और यह कारोबार खूब फलफूल रहा है। बायजू, टॉपर और वेदांतु आदि इसके उदाहरण हैं और अनुमान है कि तीन अरब डॉलर से अधिक की वेंचर फंडिंग इस क्षेत्र को मिल चुकी है।
एक और बड़ा सवाल है क्या ऑनलाइन पढ़ाई हर विषय और पाठ्यक्रम में अनिवार्य हो जाएगी या चुनिंदा में? टाइम एजुकेशन के उसी सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देने वालों ने कहा कि कंप्यूटर विज्ञान, कारोबारी प्रशासन, सामाजिक अध्ययन और विधि विषयों की पढ़ाई को ऑनलाइन करना अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक आसान होगा। उन्होंने कहा कि चिकित्सा, दंत चिकित्सा, जीव विज्ञान और पशुचिकित्सा आदि विषयों की ऑनलाइन पढ़ाई करना सबसे मुश्किल होगा।
एक ओर जहां हम सभी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन तथा उच्च शिक्षा को को ऑनलाइन करना उसके भविष्य को किस प्रकार प्रभावित करेगा, वहीं इस सवाल को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि क्या हम कुछ ज्यादा ही हो हल्ला कर रहे हैं और यह महामारी जल्दी समाप्त हो जाएगी तथा जीवन एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौट जाएगा? हाल मे छपे आलेख और किताबों का कहना है कि सन 1347 में आई बुबोनिक प्लेग, जिसने यूरोप की एक तिहाई इंसानी आबादी खत्म कर दी थी, उसके बाद श्रमिकों का मेहनताना इतना बढ़ गया कि इसके चलते श्रम की बचत करने की दृष्टि से औद्योगिक क्रांति हुई।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।